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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [३५२] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [पकारादि - ___ इसके सेवनसे राजयक्ष्मा, पाण्डु, हलीमक, | (४०८२) पाषाणभेदाचं घृतम् अर्श और रक्तपित्तका नाश होता है। ( मात्रा- (च. द.; भा. प्र.; वं. से.; वृ. मा.; ग. नि. । १ तोला ।) ___अश्मयः; वा. भ. | चि. अ. ११) ___ इसका लेप करनेसे दुष्ट वीसर्प और अग्निदग्ध पाषाणभेदो वसुको वशिरोऽश्मन्तकं तथा । वण नष्ट होता है। शतावरी श्वदंष्ट्रा च वृहती कण्टकारिका ॥ (४०८१) पारुषकं घृतम् कपोतवक्वार्तगलकाश्नोशीरगुन्द्रकाः । (च. सं। चि. अ. २९ वातर.; भा. प्र. वा. र.) | वृक्षादनी भल्लुकश्च वरुणः शाकजं फलम् ।। त्रायन्तिका तामलकी द्विकाकोली शतावरी। यवाः कुलत्याः कोलानि कतकस्य फलानि च । कशेरुका कषायेण कल्कैरेभिः पचेघृतम् ॥ ऊषकादिभतिवापमेषां का शृतं घृतम् ॥ दत्त्वा परूषकद्राक्षाकाश्मयक्षुरसान् समान् । भिनत्ति वातसम्भूतामश्मरी लिममेव तु । पृथविदार्याः स्वरसं तथा क्षीरं चतुर्गुणम् ॥ काय- पखानभेद, लाल आक, चिरचिटा, एतत्मायोगिक सर्पिः पारूषकमिति स्मृतम् । पत्थरचटा, शतावर, गोखरू, बड़ी कटेली, छोटी वातरक्ते क्षते क्षीणे वीस पैत्तिके ज्वरे॥ । कटेली, मकोय, नीले फूलकी कटसरैया, कचनारकी काथ-त्रायमाना, भुईआमला, काकोली, क्षीर छाल,खस, गुन्दपटेर, बन्दा, अरलुकी छाल, बरनेकी काकोली, शतावर और कसेरु । समान भाग मिश्रित १ सेर लेकर, कूटकर सबको ८ सेर पानीमें पकावें। छाल, सागोनके फल, जौ, कुलथी, बेर और जब २ सेर पानी रह जाय तो छान लें। निर्मलीके फल । समान भाग मिश्रित ४ सेर लेकर कल्क-उपरोक्त चीजें समान-भाग-मिश्रित | सबको एकत्र कूटकर ३२ सेर पानी में पकावें जब २० तोले लेकर पानी के साथ पीस लें। ८ सेर पानी शेष रह जाय तो छान लें। अन्य द्रव पदार्थ-फालसेका रस २ सेर, | इस काथ और 'उपकादि गण'' के दाख (अंगूर) का रस २ सेर, खम्भारीके फलोका कल्कके साथ २ सेर घृत सिद्ध करें। रस २ सेर, ईखका रस २ सेर और बिदारीकन्द इसके सेवन से वातज पथरी शीघ्र ही टूट का रस २ सेर तथा दूध ८ सेर । विधि-२ सेर घी और उपरोक्त समस्त कर निकल जाती है। पदार्थको एकत्र मिलाकर पकावें। जब घृतमात्र (मात्रा-३ से ६ माशे तक।) शेष रह जाय तो छान लें। १. रेह, सेंधानमक, शिलाजीत, दो प्रकारका यह घृत वातरक्त, क्षत, क्षीणता, वीसर्प कसीस, हींग और नीला थोथा (शुद्ध) समान माग भौर पैत्तिक ज्वरमें उपयोगी है। मिश्रित १३ तोले चार माशे। - For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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