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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir घृतपकरणम् ] तृतीयो भागः। [३५१] वीर्यकी कमी और बन्ध्यत्व आदि रोगोंको नष्ट । यह घृत उपद्रव-सहित राजयक्ष्मा को नष्ट करता है । तथा इसके सेवन से आयु, वर्ण और | करता है। बलकी वृद्धि होती है। (मात्रा-१ तोला) यह अलक्ष्मी, और ग्रहदोषों को भी शान्त । (४०८०) पाराशरं घृतम् (२) करता है। (वृ. नि. र. । क्षय.) ( मात्रा-१ तोला ।) यष्टी बला गुडूची च पञ्चमूलं समांशकम् । पारदादिसर्पिः कायेन सदृशं धात्रीरसं चेक्षुरसं तथा ॥ (वै. र. । उपदंश.; वृ. यो. त.। त. ११७) विदार्याया रसं चैव घृतं च समभागिकम् । लेपप्रकरणमें देखिये । क्षीरं दधिसमं चात्र नवनीतं तु तत्समम् ॥ (४०७९) पाराशरं घृतम् (१) द्राक्षातालीससंयुक्तं पथ्या लाभेन योजयेत् । सिद्धं घृतं च पानीये नस्ये बस्तौ प्रदापयेत् ॥ (च. द.; वं. से; वृ. मा. । राजय.) हरते राजयक्ष्माणं पाण्डुरोगं च दारुणम् । यष्टीवलागुडूच्यल्पपञ्चमूलीतुलां पचेत् । हलीमकार्शसी नित्यं रक्तपित्तनिवारणम् ॥ शूर्पेऽपामष्टभागस्थे तत्र पात्रं पचेद् घृतम् ।। लेपनं दुष्टवीसर्पपित्तदग्धव्रणापहम् ॥ धात्रीविदारीस्वरसे त्रिपात्रे पयसोर्मणे। काथ-मुलैठी, खरैटी, गिलोय, शालपर्णी, सुपिष्टैीवनीयैश्च पाराशरमिदं घृतम् ॥ पृष्टपर्णी, कटेली, कटेला और गोखरु ।समान-भागससैन्यं राजयक्ष्माणमुन्मूलयति शीलितम् ॥ | मिश्रित ४ सेर लेकर कूटकर ३२ सेर पानी में काथ-मुलैठी, खरैटी, गिलोय, शालपर्णी, | पकावें जब ८ सेर पानी शेष रह जाय तो छान लें। पृष्ठपर्णी, कटेली, कटेला और गोखरु । सब समान- अन्य द्रव पदार्थ-आमलेका रस ८ सेर, भाग-मिश्रित ६ । सेर लेकर, कूटकर सबको ६४ । ईखका रस ८ सेर, बिदारीकन्दका रस ८ सेर, दूध सेर पानी में पकावें । जब ८ सेर पानी शेष रह | ८ सेर और दही ८ सेर।। जाय तो छान लें। ___कल्क-दाख (मुनक्का ), तालीसपत्र और कल्क-जीवनीय गणकी ओषधियां समान हरै । समान-भाग-मिश्रित २ सेर लेकर पानी के साथ पीस लें। भाग-मिश्रित १ सेर लेकर पानी के साथ पीस लें। विधि-८ सेर घी, ८ सेर नवनीत (मक्खन) अन्य द्रव पदार्थ-आमलेका रस १२ सेर, ! और उपरोक्त समस्त पदार्थों को एकत्र मिलाकर विदारीकन्दका रस १२ सेर और दूध ३२ सेर । पकावें । जब घृतमात्र शेष रह जाय तो छान लें। विधि-उपरोक्त समस्त चीजें तथा ८ सेर इसे नस्य और बस्तिद्वारा प्रयुक्त करना तथा घृत को एकत्र मिलाकर पकावें । पिलाना चाहिये। For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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