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त-भैषज्य रत्नाकर! |
[ ३५० ]
[ पकारादि
चिरायता, जटामांसी (बालछड़), सोंठ, और दारु- । स्थिस नतं हरिद्रे द्वे सारिवे द्वे मियका || हल्दी । समान-भाग-मिश्रित ४ सेर लेकर कूटकर नीलोत्पलैलामञ्जिष्ठादन्तीदाडिमकेसरम् । सबको ३२ सेर पानीमें पकावें । जब ८ सेर पानी विडङ्गं पृश्निपर्णी च कुष्ठचन्दनपद्मकैः ॥ शेष रह जाय तो छान ले 1 तालीसपत्रं बृहती मालत्याः कुसुमं नवम् । अष्टाविंशतिभिः कल्कैरेतैरक्षसमन्वितैः ॥ चतुर्गुणं जलं दत्त्वा घृतप्रस्थं विपाचयेत् । अपस्मारे ज्वरे कासे शोषे मन्देऽनले क्षये || वातरक्ते प्रतिश्याये तृतीयकचतुर्थके । छर्शोमूत्रकृच्छ्रे च विसर्पोपद्रवेषु च ॥ कण्डूपाण्ड्वामयोन्मादविषमेहगरेषु च । भूतोपहतचित्तानां गद्गदानामरेतसाम् ।। शस्तं स्त्रीणां च बन्ध्यानामायुर्वर्णबलप्रदम् । अलक्ष्मीपापरक्षोघ्नं सर्वग्रहनिवारणम् ॥ कल्याणकमिदं सर्पिः श्रेष्ठं पुंसवनेषु च ॥
भारत
कल्क-उपरोक्त सब चीजें समान भाग- मिलित १३ तोले ४ माशे लेकर पानीके साथ पीस लें ।
विधि - २ सेर घी तथा यह काथ और कल्क एकत्र मिलाकर पकावें । काथ जलने पर घी को छान लें।
यह घृत ज्वरातिसार, संग्रहणी, पाण्डु, मूत्रकृच्छ्र, अतिसार, विषुचिका और अलसकमें हितकारी है | ( मात्रा १ तोला । ) नोट - काथमें लाल चन्दन और कल्क में सफेद चन्दन डालना चाहिये ।
(४०७८) पानीयकल्याणकं घृतम् (बृ. मा.; भै. र.; च. द. । ज्वरा.; शा. ध. । ख. २ अ. २; वृ. यो. त. । त. ८८ ) विशाला ' त्रिफला कौन्ती देवदावैलवालुकम् ।
१. वङ्गसेन में इससे पूर्व इतना पाठ अधिक है:दशमूली तथा रास्ना वानरी त्रिवृता बला । मूर्वा शतावरी चेति काथ्यैस्तु कुडवैः पृथक् ।। कृत्कार्थं पृथक् प्रस्थद्वयं मृद्वग्निना पचेत् ॥ (वं. से. । उन्मादा० ) दशमूल, रास्ना, कौंचके बीज, निसोत, खरैटी, मूर्वा, और शतावर पृथक् पृथक् २०-२० तोले लेकर कूटकर हरेकको अलग अलग ४ -४ सेर पानीमें पकावें । जब १-१ सेर पानी रह जाय तो सब कार्यों को एकत्र मिला लें ।
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इन्द्रायण की जड़, हर्र, बहेड़ा, आमला, रेणुका, देवदारु, एलवालुक, शालपर्णी, तगर, हल्दी, दारूहल्दी, दोनों प्रकारकी सारिवा, फूल प्रियङ्गु, नीलोत्पल, इलायची, मजीठ, दन्तीमूल, अनारदाना, नागकेसर, बायबिडंग, पृष्टपर्णी, कूठ, सफेद चन्दन, पद्माक, तालीसपत्र, कटेली और चमेली के नवीन पुष्प | प्रत्येक ओषधि ११ - १ तोला लेकर पीसकर कल्क बनावें । तत्पश्चात् २ सेर घी में यह कल्क और ८ सेर पानी डालकर पकावें । जब पानी जल जाय तो घृत को छान लें ।
यह घृत अपस्मार, ज्वर, खांसी, शोष, अग्निमांद्य, क्षय, वातरक्त, प्रतिश्याय, तृतीयक ज्वर, चतुर्थिक (चौथिया) ज्वर, छर्दि (वमन), अर्श, मूत्रकृच्छ्र, विसर्प, कण्डु, पाण्डु, उन्माद, विष, प्रमेह, गरविष, भूतोन्माद, गद्गदता ( हकलाना ),
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