SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 327
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ ३३२] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [पकारादि लका काथ सब चीज अतो लेहपलं लीट्वा पथ्यां चैकां च भोजयेत् । पुनर्नवा ( बिसखपरा----साठी ), गिलोय, शोफगुल्मोदरार्शोन्नी पुनर्नवहरीतकी । पनर्नवा ( बिसखपग-मादी) र चीता। समान भाग मिश्रित ४ सेर लेकर ३२ सेर पानी १ सेर; पाठा, सांठ और दन्तीमूल १०-१० पल में पकाकर ८ सेर शेष रक्खें । ), अदरकका रस ( हरेक ५० तोले), दशमूलकी हरेक चीज ५ २ सेर और गुड़ ६। सेर लेकर सबको एकत्र पकाकर पल ( २५ तोले ) और हरै १०० नग लेकर | लेह बनावें और फिर उसमें सेठ, मिर्च, पीपल, हरीको कपड़े की पोटलीमें बांध लें और बाकी चव, इलायची, दालचीनी और तेजपातका चूर्ण सब चीजोको अधकुटा करलें । तत्पश्चात् सबको ११-१। तोला मिला । जब शीतल हो जाय तो ८ गुने पानी में पकावें और जब चौथा भाग पानी | उसमें ४० तोले शहद मिलावें । शेष रह जाय तो क्वाथको छान लें और हरी को यह लेह कफज शोथ, श्वास, खांसी और अलग रख दें । इस काथमें ६। सेर गुड़ और वे अरुचि नाशक तथा बल पुष्टि और अग्निवर्द्धक है। हरै डालकर फिर पकावें । जब अवलेह तैयार हो | ( मात्रा-६ माशे ।) जाय तो उसमें ५-५ तोले दालचीनी, तेजपात, ति, (४०३६) पुष्करमूलादि लेहः इलायची, सेठ, मिर्च, पीपल और नागकेसरका ( भा. प्र. । ज्वरा.; वृ. नि. र. । ज्वरोपद्रव.) चूर्ण मिलावें । और जब वह ठण्डा हो जाय तो उसमें ४० तोले शहद मिलाकर सुरक्षित रक्खें । पुष्करमूलकटुत्रिक्शृङ्गी इसमें से नित्य प्रति ५ तोले अवलेह चाटने कट्फलयासककारविकाभिः । | मधुलुलिताभिरयं खलु लेहः और १ हर्र खानेसे शोथ, गुल्म, उदररोग और ___ कासरिपुः कफरोगहरश्च ।। अर्शका नाश होता है। पोखरमूल, सांठ, मिर्च, पीपल, काकड़ासिंगी, (४०३५) पुनर्नवादिलेहः कायफल, धमासा और कलौंजी के समानभाग(वं. से.; भै. र.; च. द.; यो. र.; ग. नि.; वृं. मिश्रित चूर्णको शहदमें मिलाकर चाटनेसे खांसी मा. । शोथा.; वृ. यो. त. । त. १०६) और कफज रोग नष्ट होते हैं। पुनर्नवामृतादारुदशमूलरसाढके। (४०३७) पुष्करलेहः आईकस्वरसे प्रस्थे गुडस्य च तुलां पचेत् ॥ तत्सिद्धं व्योषचव्यैलात्वपत्रैः कार्पिकैः पृथक् । ( रसें. सा. सं.; र. रा. मुं. । प्रदर.; रसें. चि.म. अ. ९) चूर्णीकृतैलिहेच्छीते मधुनः कुडवं क्षिपेत् ॥ लेहः पौनर्नवो नाम्ना श्लेष्मशोथनिषूदनः। रसाञ्जनं शुभा शृङ्गी चित्रकं मधुयष्टिकम् । श्वासकासारुचिहरो बलपुष्टयग्निवर्द्धनः॥ । धान्यतालीशगायत्रीद्विजीरं त्रिता बला ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy