________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
[३३०]
भारत-भैषज्य-स्नाकरः।
[पकारादि
पचेल्लेहं घृतक्षौद्रयुक्तं स श्वासकासजित् । । (४०३२) पिप्पल्याचवलेहः (४) क्षयहृद्रोगकासनो हितो वृद्धाल्परेतसाम् ॥ |
(पिप्पलीपाक ) पीपल, मुलैठी और मिश्री ११-१। तोला,
( ग. नि. । परिशि. अवले. ५; वृ. नि. र.; यो. गायका घी, दूध और ईखका रस २-२ सेर तथा र. । ज्वरा.; यो. चिं. म. । पाका.) जौ, गेहूं, मुनक्का, आमलेका रस और तेल १०- प्रस्थं पिप्पलीमादाय क्षीरश्चैव चतुर्गुणम् । १० तोले लेकर चूर्ण योग्य चीज़ों का चूर्ण करके | अख़्ढकं घृतं गव्यं शुद्धखण्डात्तथाऽऽढकम् ।। सबको एकत्र मिलाकर मन्दाग्नि पर पकावें । जब | पचेन्मृद्वमिना तावद्यावत्पाकमुपागतम् । लेह तैयार हो जाय तो ठण्डा करके उसमें घी | शीतीभूते क्षिपेत्तस्मिंश्चातुर्जातपलत्रयम् ॥ और शहद मिलाकर रखें।
योजयेन्मात्रया दोषधात्वग्निबलसात्म्यतः। ___ इसके सेवन से श्वास, खांसी, क्षय और
| बल्यो दृष्यस्तथा हृयो धातुपुष्टिकरः परः॥
जीर्णज्वरहरश्चैव स्त्रियं चैव तु टंहयेत् । हृद्रोग नष्ट होता है।
छर्दिषारुचिश्वासशोषहिध्मा सकामलाः॥ यह वृद्ध और अल्पवीर्य पुरुषोंके लिये हित
हृद्रोगं पाण्डुगुल्मञ्च प्रदरं च त्रिदोषजम् ।
शोणितानिलकाय च रक्तपित्तं नियच्छति ।। कारी है।
सतताभ्यासयोगेन वलीपलितवर्जितः॥ (४०३१) पिप्पल्याचवलेहः (३)
पीपलका चूर्ण १ सेर, गोदुग्ध ८ सेर, गो(वृं. मा.: वं. से. । यो. र.: ग. नि.: वृ. नि. | घृत ४ सेर और शुद्ध खांड ४ सेर लेकर सबको र.। कासा.; वृ. यो. त. । त. ७८)
एकत्र मिलाकर मन्दाग्निपर पकावें । जब अवलेह
तैयार हो जाय तो उसे ठंडा करके उसमें दालपिप्पली पद्मकं लाक्षा' सुपकं वृहतीफलम् ।। चीनी, तेजपात, इलायची और नागकेसरका घृतक्षौद्रयुतो लेहः क्षतरकासनिबहेणः॥ समान भाग मिश्रित चूर्ण १५ तोले मिलाकर पीपल, पनाक, लाख और कटेलीके पक्के
सुरक्षित रक्खें । फल समान भाग लेकर सबको पीसकर घी और
इसे दोष, धातु, अग्निबल और सात्म्यादि के शहदमें मिलाकर सेवन करने से क्षतज खांसी नष्ट | विचारसे यथोचित मात्रानुसार सेवन करनेसे होती है।
१-योग चिन्तामणिमें इससे भागे यह पाठ
अधिक है१-द्राक्षेति पाठान्तरम् ।
षोडशपलप्रमाणं खादिरं गुन्दमेव च । २-क्षयेति पाठान्तरम् ।
पाचितं गव्यहम्येन निक्षिपेवस्य मध्यतम् ॥
For Private And Personal Use Only