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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चूर्णप्रकरणम् ] तृतीयो भागः। [३२९] इसके पश्चात् जब वह शीतल हो जाय तो | पीपल, आमला, मुनक्का, खजूर और मिसरी उसमें जायफल और पीपलका चूर्ण तथा शहद समान भाग लेकर सबको एकत्र पीसकर घी और १५-१५ तोले मिलाकर सुरक्षित रक्खें । शहदमें मिलाकर चाटनेसे पित्तज क्षतज खांसी ___ इसके सेवनसे अम्लपित्त, जी मिचलाना,अरु- नष्ट होती है । ची, वमन, श्वास, खांसी और क्षयका नाश होता (४०२९) पिप्पल्यादिलेहः (३) है। यह अग्निदीपक तथा हृदयके लिये हित (रा. मा. | कासाधि. १०) कारी है । ( मात्रा ६ माशे ।) कृष्णामयूरच्छदभस्मयुक्ता (४०२६) पिप्पलीमूलाधवलेहः क्षौद्रेण लीढा विनिहन्ति हिक्काम् । (वृ. नि. र. । हिक्का.) श्वासं च सापूरमपि प्रवृद्धं पिप्पलीमूलमधुकं गुडगोश्वसकृद्रसान् । सुसूत्रतामानयति असहय ॥ हिध्याभिष्यन्दकासन्नान् लिहेन्मधुघृतान्वितान्॥ पीपल और मोरके पंखकी भस्म समान भाग ___पीपलामूल, और मुलैठीका चूर्ण तथा गुड़ लेकर दोनोंको शहदमें मिलाकर चटानेसे हिचकी और गाय तथा घोड़ेके मलका रस समान भाग | नष्ट होती है तथा अत्यन्त बढ़ा हुवा श्वास सुव्यलेकर सबको शहद और घी में मिलाकर चाटनेसे । वस्थित हो जाता है । हिचकी, आंखें दुखना और खांसी का नाश (मात्रा-१माशा ।) होता है। (४०२७) पिप्पल्यादिलेहः (१) पिप्पल्याचवलेहः (१) (ग. नि. | कासा. १०) (वं. से. । अम्लपित्त.) पिप्पल्यामलकं द्राक्षा तुगाक्षीर्यथ शर्करा।। प्र. सं. १०८१ खण्डपिप्पली देखिए लाक्षाघृतं माक्षिकं च लेहः कासविनाशनः ॥ (४०३०) पिप्पल्याचवलेहः (२) पीपल, आमला, मुनक्का, वंसलोचन, मिसरी और लाख समान भाग लेकर सबको पीसकर घी (यो. र.। क्षयकास.; वृ. यो. त. । त. ७८; और शहदमें मिलाकर चाटनेसे खांसी नष्ट होती है। च. सं. । चि. अ. ३२) (४०२८) पिप्पल्यादिलेहः (२) पिप्पली मधुकं पिष्टं कार्षिकं ससितोपलम् । (ग. नि. । कासा. १०) प्रस्थैकं गव्यमाज्यं च क्षीरमिक्षुरसस्तथा ॥ पिप्पल्यामलके द्राक्षा खर्जूरं शर्करा मधु । यवगोधूममृद्वीकाचूर्णमामलकीरसम् ।। लेहोऽयं सघृतो लीढः पित्तक्षतजकासनत ॥ तैलं च प्रसृतांशानि तत्सर्वं मृदुवहिना ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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