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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ ३२८] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [पकारादि कर्षादै भक्षयेत्मातस्तीक्ष्णं तैलादिकं त्यजेत् ।। परहेज़-तेल और तीक्ष्ण पदार्थ न खाने पञ्चाश्मरीभेदनः स्यान्मूत्रकृच्छं खुडं तथा ॥ | चाहिये। मूत्राघातान्ममेहांश्च नाशयेन्मधुमेहताम् । पिप्पलीखण्डः अधोगं रक्तपित्तश्च वस्तिकुक्षिगदं तथा ॥ ( भै. र. । अम्लपित्ता.) तीवाश्मरीपरीतानां विशेषेण हितं हि तत् । । खण्डपिप्पली (प्रयोग सं. १०८०) देखिये। प्रथमात्रिणा विरचितं च्यवनाय निवेदितम् ॥ (४०२५) पिप्पलीखण्डः ( वृहत् ) ___ पखानभेदका कपड़छन महीन चूर्ण १ सेर लेकर ( भै. र. । अम्लपित्त.) उसे ८ सेर गोदुग्धमें मन्दाग्निपर पका और जब पिप्पल्याः कुडवं चूर्ण घृतस्य कुडवद्वयम् । वह गाढ़ा हो जाय तो उसमें निम्न लिखित पलषोडशिकं खण्डादसे वाः पलाष्टके । चीजोंका महीन चूर्ण मिला दें। पलपोडशिके चैव आमलक्या रसस्य च । इलायची, लौंग, पीपल, मुलैठी, गिलोय, हरं, क्षीरप्रस्थद्वये साध्यं लेहीभूते ततः क्षिपेत् ।। रेणुका, गोखरु, बासा, सरफेोंका, पुनर्नवा, जवा त्रिजातकामयाजाजी धन्याकं मुस्तकं शुभा। धात्री च कार्षिकं चूर्ण कार्द्धश्चापि जीरकम् ॥ खार, बहेड़ा, जटामांसी और सप्ताङ्गुलका चूर्ण ५-५ तोले तथा बंगभस्म, लोहभस्म, अभ्रकभस्ग, कुष्ठनागरकं नागं सिद्धशीतेऽवचूर्णितम् । कपूर, पित्तपापड़ा, शटी (कचूर), तेजपात, नाग जातीफलं समरिचं मधुनश्च पलत्रयम् ।। केसर, दालचीनी और शुद्ध शिलाजीत का चूर्ण उपयुज्यात्ततो धीमानम्लपित्तनिवृत्तये । आधा आधा पल (२॥-२।। तोले ) तथा सफेद हृल्लासारोचकच्छर्दिवासकासक्षयापहम् ॥ खांड १॥ सेर । अग्निसन्दीपनं हृद्यं पिप्पलीखण्डसंज्ञितम् । __पीपलका चूर्ण २० तोले, शतावरका रस १ इन सब चीजेके मिलानेके पश्चात् जब वह | सेर, आमलेका रस २ सेर और दूध ४ सेर लेकर पाक बिल्कुछ ठण्डा हो जाय तो उसमें २ सेर | | सबको एकत्र मिलाकर मन्दाग्नि पर पकावें और शहद मिलाकर चिकने पात्रमें भरकर सुरक्षित | जब खोया तैयार हो जाय तो उसे १ सेर धीमें रक्खें । भूनकर १ सेर खांडकी चाशनी में मिला दें और इसके सेवनसे पांच प्रकारकी अश्मरी, मूत्र- फिर उसमें निम्न लिखित चीजेका बारीक कृष्छू, वातरक्त, मूत्राघात, प्रमेह, मधुमेह, अधो- चूर्ण मिलाएं। गत रक्तपित्त, बस्तिरोग और कुक्षिगत रोग नष्ट दालचीनी, तेजपात, इलायची, हर्र, कालाहोते हैं । यह पाक अश्मरीके लिये विशेष जीरा, धनिया, नागरमोथा, बंसलोचन और आमउपयोगी है। लेका चूर्ण १।--११ तोला तथा जीरा, कूठ, सेठ मात्रा-६-७ माशे । और नागकेसर मेंसे हरेकका चूर्ण ७|| माशे । For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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