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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir करायप्रकरणम् तृतीयो भागः। [२१] - (२९२२) द्राक्षादिकाथः (१३) । (२९२४) द्राक्षादिकाथः (१५) (यो. र.। विस्फो.; वृ. नि. र.। मसू.; वं. से.) । (वृ०नि०र० । शूल०; वृ०यो०तात०९४) द्राक्षाकाश्मर्यखजूरपटोलारिष्वासकैः। पित्तश्लेष्मोद्भवं शूलं विरेकवमनैर्जयेत । कटुकालाजदुःस्पर्शः काथः शकरया युतः॥ द्राक्षाटरूपयोः कायः पित्तश्लेष्मरुज जयेत् ॥ विस्फोटं पित्तनं हन्ति सोपद्रवमसंशयम् ॥ पित्तकफज शूलमें विरेचन और वमम करा ना चाहिए। दाख (मुनक्का) खम्भारीके फल, खजूर (फल), मुनक्का (दाख) और बासेका काथ पीनेसे पटोलपत्र, नीमकी छाल, बासा, कुटकी, खस | | पित्तकफज शूल शान्त हो जाता है। और धमासा । इनके काथमें खांड मिलाकर पीनेसे उपद्रव सहित पित्तज विस्फोटक अवश्य नष्ट हो (२९२५) द्राक्षादिक्षीरम् । (१) (यो० र० । रक्त पि०) जाता है। द्राक्षया फलिनीभिर्वा बलया नागरेण वा। (नोट---१० तोले काथमें २॥ तोले खांड श्चदंष्ट्रया शतावर्या रक्तजित्साधितं पयः॥ मिलानी चाहिये।) मुनक्का, फूलप्रियंगु, खरैटी, सौंठ, गोखरु (२९२३) द्राक्षादिकाथः (१४) और शतावरमें से किसी एकके साथ दूध पकाकर (वृ.नि. र.। मूर्छा.) | पिलाने से रक्तपित्त नष्ट होता है। द्रालासितादारिमलाजवन्ति ( ओषधि ५ तोले, बकरीका दूध ४० तोले, कहलारनीलोत्पलपलवन्ति । पानी १६० तोले मिलाकर पानी जलने तक पकावें।) पिवेत्कषायाणि च शीतलानि २९२६) द्राक्षादिक्षीरम् (२) पिसज्वरं यानि न यापयन्ति ॥ (ग. नि.; रा. मा. । ज्वरा.) - (१) दाख (मुनक्का); मिश्री, अनारकी छाल, द्राक्षाटरूषकृतमालयवासभूमिऔर खस । (२) लाल कमल, नीलकमल और | निम्बैः शतं मळयजेन युतं पयो यः। सफेद कमल। दोषत्रयेण अनितेऽपि पिबेज्ज्वरेऽसौ इन दोनो योगोमेंसे किसीका शीतकषाय तत्कालमाशु लमते बलमत्युदारम् ॥ पीनेसे मूर्छा नष्ट होती है। दाख (मुनक्का), बासा, अमलतास, जवासा, मूर्छामें पित्तज्वरनाशक शीतल कषाय पिला- चिरायता, और सफेद चन्दनके साथ दूध पकाकर ने चाहिये। पीनेसे त्रिदोषज्वर नष्ट होता है । (५ तोले ओषधिको ३० तोले पानीमें मिला- नोट-हरेक ओषधि ६ माशे; दूध २४ कर रातभर रक्खा रहने दें। प्रातःकाल छानकर तोले, पानी ९६ तोले। सबको एकत्र मिलाकर उसमेंसे १० तोले रोगीको पिलावें। पानी जलने तक पकावें !) For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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