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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[दकारादि
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मूर्छा, भ्रम, दाह, शोष, और तृष्णायुक्त पित्त । (१० तोले काथमें ११ तोला गुड़ डालना ज्वर नष्ट होता है ।*
चाहिये।) (२९१७ ) द्राक्षादिकाथः (८) (२९२०) द्राक्षादिकाथ: (११) (ग. नि. । ज्वर.)
(वृ. नि. र. । पित्तज्व.) द्राक्षाशिवारम्वधरोहिणीनां
द्राक्षाचन्दनपानि मुस्ता तिक्तामृतापि । यापटोशीरविमिश्रितानाम् ।
धात्रीबालमुशीरं च लोऽन्द्रयवपर्पटाः॥ फायपिवेस्पित्तसमुद्भवोऽस्य ।
परूषर्क मियाश्च यवासो वासकस्तथा। ज्वरः शमं याति सतृटसमूर्छः॥ मधुकं कुलकं चापि किरातो धान्यकस्तथा ॥ ____ मुनक्का, हरे, अमलतास, कुटकी, पित्तपापड़ा। एषां कायो निहन्त्येव ज्वरं पित्तसमुद्भवम् ।
और खसका काथ पीनेसे पिपासा तथा मूर्छा तृष्णां दाहालापं च रक्तपितं भ्रमं क्लमम् ॥ युक्त पित्तज्वर नष्ट होता है।
मूच्छी छदि तथा शूलं मुखशोषमरोचकम् । (२९१८ ) द्राक्षादिकाथ: (९)
कासं वार्स चल्लासं नाशयेनात्र संशयः ॥ (हा. सं. । स्था. ३ अ. २)
दाख (मुनका), लाल चन्दन, पदमाक, नागरद्राक्षामृतावासकतिक्तकाच
मोथा, कुटकी, गिलोय, आमला, सुगन्ध बाला, खस, भूनिम्बतिक्तेन्द्रयवापटोलम् । लोध, इन्द्रजौ, पित्तपापड़ा, फालसेकी छाल, फूल मुस्ता सभाी कथितः कषायः
प्रियङ्गु, जवासा, बासा, मुलैठी, पटोल पत्र, चिरासपित्तश्लेष्मज्वरनाशनाय ॥ यता और धनिया। इनका काथ पीनेसे तृष्णा, दाह, दाख (मुनक्का), गिलोय, बासा, कुटकी, चिरा- प्रलाप, रक्तपित्त, भ्रम, क्लम, मूर्छा, छर्दी, शूल, यता, पित्तपापड़ा, इन्द्रयव, पटोलपत्र, नागरमोथा मुखशोष, अरुचि, खांसी, श्वास, हल्लास और
और भारंगीका काथ पिलानेसे पित्तकफज ज्वर पित्तज्वर अवश्य ही नष्ट हो जाता है। नष्ट होता है।
(२९२१) द्राक्षादिकाथ: (१२) (२९१९) द्राक्षादिक्काथ: (१०) (वृ. नि. र.; वं. से.; यो. र.; भा. प्र. । ज्वर.)
___ (ग. नि. । ज्व.; वृ. नि. र. । ज्वर.) द्राक्षापटोलनिम्बाब्दशक्राहत्रिफलामृतम् । द्राक्षा किरातको धात्री कचूरोऽमृतवल्लरी।। जलं जन्तुः पिबेच्छीधं अन्येधुज्वरशान्तये ॥ एषां काथो गुडोपेतः पीतो द्वन्द्वजरोगजित् ॥ दाख (मुनक्का), पटोलपत्र, नीमकी छाल,
द्राक्षा (मुनक्का), चिरायता, आमला, कचूर | नागरमोथा, इन्द्रजौ और त्रिफला (हरे, बहेड़ा, और गिलोयके काथमें गुड़ मिलाकर पीनेसे द्विदो- ! आमला ) का काथ पीनेसे इफतरा ज्वर जाता घज ज्वर नष्ट होता है।
| रहता है। * हारीत संहिता, बैयरहस्य और भावप्रकाशमें पाठ भिन्न है परन्तु भोषधियां यही है।
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