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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कपायप्रकरणम् ] तृतीयो भागः। [१९] (२९१०) द्राक्षादिकाथ: (१) दश ओषधियोंका काथ लघु, दीपनपाचन और (वृ. नि. र. । वात.) वातपित्त-वर नाशक है। द्राक्षापटोलत्रिफलापिचुमन्दकृषैः कृतः । (२९१४) द्राक्षादिकाथ: (५) काय एकाहिकं हन्ति परार्थमिव दुर्जनः । (वं. से. । तृषा.) ___ दाख (मुनक्का), पटोल पत्र, त्रिफला, नौमकी द्राक्षाचन्दनखजूरीपीतं मधुयुतं जलम् । छाल और बासेका काथ पिलानेसे इकतरा (एकाहिक) तृष्णाहरं पिबेदापि मधुना तण्डुलोदकम् ॥ ज्वर शीघ्र ही नष्ट हो जाता है। मुनक्का, लालचन्दन और खजूरके काथमें (२९११) द्राक्षादिकाथः (२) शहद मिलाकर पीनेसे अथवा तण्डुलोदक (चाव(वै. जी. । वि. ४) लोंके धोवन) में शहद मिलाकर पीनेसे तृष्णा शान्त द्राक्षापथ्याकृतः काथः शर्करामधुमिश्रितः।। हो जाती है। श्वासकासहरो देयो रक्तपित्तपशान्तये ॥ (तण्डुलोदक बनानेकी विधि प्रथम भागके ___मुनक्का (दाख) और हरैके काथमें मिश्री और शहद मिलाकर पिलानेसे श्वास, खांसी और | पृष्ठ ३५३ पर देखिये।) रक्तपित्तका नाश होता है। (२९१५) द्राक्षादिकाथ: (६) (२९१२ ) द्राक्षादिकाथः (३) (वृ. नि. र.; वं. से. । पित्तज्वर.) (वृ. नि. र. । वा. पि. ज्वर.) | द्राक्षाशम्पाककटुकामुस्तं ग्रन्थिकधान्यकम् । द्राक्षाकिरातामृतावासासठी | पक्वं हन्यादुदावः शूलं पित्तकफज्वरम् ॥ काथं पिबेत्पित्तमरुज्ज्वर हरेत् ॥ ___मुनक्का (दाख), अमलतास, कुटकी, मोथा, दाख (मुनक्का), चिरायता, गिलोय, बासा पीपलामूल और धनियेका काथ पीनेसे उदावर्त, और सठी (कचूर) का काथ पिलानेसे वातपित्त | शूल और पित्त कफज ज्वर नष्ट होता है। ज्वर नष्ट होता है। ( २९१६) द्राक्षादिकाथ: (७) (२९१३) द्राक्षादिकाथः (४) (हा. सं.; वै. र.; भा. प्र.; वृ. नि. र.; ग. नि. (यो. र. । ज्वर.) ___. मा.; वं. से. । ज्वर.; यो. चि.। अ. ४) द्राक्षालवगशुण्ठीत्वग्धनिका च हरीतकी। द्राक्षाभयापर्पटकान्दतिक्ता मिसी गुस्ताऽमृता चैव कृतमालकषायकः ॥ काय: ससम्पाकफलो विदध्यात् । पातपित्तज्वर हन्ति पाचनो लघु दीपनः। प्रलापमू भ्रमदाहशोष दशभिश्चौषधेरेतेः सर्वज्वरविनाशनः॥ तृष्णान्विते पित्तभवे ज्वरे च ॥ ___ दाख (मुनक्का), लौंग, सोंठ, दालचीनी, धनिया मुनक्का (दाख), हर्र, पित्त पापड़ा, नागरमोथा, हर, सौंफ, मोथा, गिलोय और अमलतास; इन ! कुटकी, और अमलतासका काथ पीनेसे प्रलाप, For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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