SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra [14] (२९०४) द्राक्षादिकल्कः (१) (बृ. नि. र. । ज्वर. ) www.kobatirth.org भारत - भैषज्य रत्नाकरः । द्राक्षालकयोः कल्कं सघृतं वदने क्षिपेत् । तेन घृष्ट्वा मुखस्यान्तः कुर्वीत प्रतिसारणम् ॥ जिह्वावालुगलान्तस्थः संशोषस्तेन शाम्यति । सुरसं जायते वक्रं रुचिर्भवति भोजने ॥ दाख ( मुनक्का ) और आमलेको पत्थर पर पिट्टी की तरह पीसकर उसमें थोड़ा घी मिलाकर उसे जीभ तालु आदिपर मलें । इससे जीभ, तालु, और गलेका शोष नष्ट होकर मुखका स्वाद ठीक हो जाता है और भोजनमें रुचि बढ़ती है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ दकारादि (२९०७) द्राक्षादिकषाय: (१) (ग. नि. । मुख.) द्राक्षागुडूची सुमनःमत्राला दाaarefत्रफलाकषायः । क्षौद्रेण युक्तः कवलग्रहोऽयं मुखस्य पार्कं शमयत्युदीर्णम् ॥ दाख ( मुनक्का ), गिलोय, चमेलीकी कपल, दारूहल्दी, जवासा और त्रिफलाके काथमें शहद डालकर उससे कुल्ले (गरारे) करनेसे मुखपाक नष्ट हो जाता है । (२९०८) द्राक्षादिकषाय: (२) (बृ. नि. र. । गुल्म. ) (२९०५) द्राक्षादिकल्कः (२) ( यो त । त. २० ) द्राक्षाभयारसं गुल्मे पैत्तिके सगुडं पिबेत् । शुष्कां च स्फुटितां जिह्वां द्राक्षया मधुपिष्टया । सशर्करं वा विलिहन् त्रिफला चूर्णमुत्तमम् ॥ प्रलेपयेत्सघृतया सनिपातज्वरे गये || यदि सन्निपात ज्वरमें जीभ शुष्क हो जाय और फट जाय तो उसपर मुनक्का ( दाख) को शहद के साथ पीसकर उसमें थोड़ासा घी मिलाकर उसका लेप करना चाहिए । (२९०६) द्राक्षादिकल्कः (३) (यो. र.; वृ. नि. र. । मूत्रकृ.) द्राक्षासितोपलाकरकं कृच्छ्रन्नं मस्तुना युतम् । पिवेद्वा कामतः क्षीरमुष्णं गुडसमन्वितम् ॥ मुनक्का ( दाख) और मिसरीको पत्थर पर चटनीकी तरह पीसकर मस्तु ( दही के तोड़) में मिलाकर पीनेसे अथवा उष्ण दूधमें गुड़ मिलाकर यथेच्छ परिमाण में पीनेसे मूत्र कृच्छ्र नष्ट होता है । ( मिसरी १ तोला, मुनक्का १ तोला, मस्तु ८ तोले ) पैत्तिक गुल्म में मुनक्का ( दाख) और हर्र के रस (शीतकाय) में गुड़ मिलाकर पिलाना या त्रिफलाके चूर्ण में खांड मिलाकर ( शहद के साथ ) चटाना चाहिये । (२९०९) द्राक्षादिकषायः (३) ( वैधामृत । वि. ४७ ) छिन्नाजाती पल्लवानां कषायः । द्राक्षादार्वी यासपध्याक्षघात्री क्षौद्रोदितो हन्ति गण्डूषयुक्तया पार्क वक्त्राम्भोजसंस्थं महान्तम् ॥ For Private And Personal Use Only दाख (मुनक्का), दारूहल्दी, धमासा, हर्र, बहेड़ा, आमला, गिलोय, और चमेली के पत्तों के काथमें शहद मिलाकर उसके कुल्ले करने से मुखपाक नष्ट होता है ।
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy