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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [३००] भारत-भैषज्य रत्नाकरः। [पकारादि श्वेतया विशिखपुझ्या युतं | (३९३७) पिचुमन्दाघुबर्तनम् सा सुतं जनयतीह नान्यथा । (ग. नि.। वातरो.) पारसपीपल, जीरा और सफेद सरफेांका पिचुमन्दस्य मूलानि चित्रको हस्तिपिप्पली। समान भाग लेकर चूर्ण बना लीजिये । त्वपत्रफलमूलानि करञ्जात्सर्षपात्तथा ॥ जो (गर्भिणी ) स्त्री पथ्य पालन पूर्वक इसे | तुल्यानि तानि सर्वाणि वल्मीकस्य च मृत्तिका। सेवन करती है उसके निश्चय ही पुत्र उत्पन्न | गवां मूत्रेण पिष्टानि सूक्ष्माण्युद्वत्तनं परम् ॥ होता है । नीमकी जड़की छाल (पाठभेदके अनुसार (३९३६) पाषाणभेदाचं चूर्णम् पत्र), चीता, गजपीपल, कर वेकी छाल पत्र फल और मूल; सरसांका पञ्चाङ्ग और बांबीकी मिट्टी (च. द. । अश्मरी.; च. सं. । चि. अ. २६) समान भाग लेकर सबका महीन चूर्ण करके उसे पाषाणभेदं दृषकं श्वदंष्ट्रा गोमूत्र में घोट लें। पाठाभयाव्योषशठीनिकुम्माः । इसकी मालिशसे ऊरुस्तम्भ रोग नष्ट होता है। हिंस्राखराश्वाशितिवारकाणा (३९३८) पिण्डारकबन्धूकयोगः __ मेर्वारुकाच्च पुपाच वीजम् ।। (वृ. नि. र. । श्लीपद.; यो. त.२ । त. ५८) उत्कुञ्चिका हिङ्गु सवेतसाम्लं पिण्डारकतरुसम्भवबन्धकशिफा च सर्पिषा स्यावे वृहत्यौ हपुपा वचा च । चूर्ण पिवेदश्मरिभेदि पकं इलीपदमुग्रं नियतं बद्धा सूत्रेण जङ्खायाम् ।। सर्पिश्च गोमूत्रचतुर्गुणं तैः॥ पिण्डारक के बन्देकी जडको धीमें पीसकर पखानभेद, बासा, गोकर, पाठा, हर्र, सेांठ, | पीने तथा उसीको सूतमें बांधकर जंघा में बांधनेसे मिर्च, पीपल, सठी (कचूर), दन्तीमूल, बालछड़, भयंकर इलीपद रोग भी शीघ्र ही नष्ट हो जाता है। खुरासानी अजवायन, सुनिषण्णक ( चांगेरीभेद ), (३९३९) पिप्पलीचूर्णम् ककड़ी और खीरेके बीज, कलौंजी, हींग, अमल- (३. मा.; भा. प्र. । ज्वरा; शा. ध.। वेत, कटेली, कटला, हाऊबेर और बच । सब ख. २. अ. ६) चीजें समान भाग लेकर चूर्ण बनावें । मधुना पिप्पलीचूर्ण लिहेकासज्वरापहम् । इस चूर्णको सेवन करनेसे अथवा इन्हीं हिका श्वासहरं कण्ठयं प्लीहन्नं बालकोचितम् ॥ चीजेोक कल्क और काथसे घृत पकाकर सेवन पीपलके चूर्णको शहदके साथ चाटनेसे करनेसे पथरी नष्ट हो जाती है । १ 'पत्राणि' पाठ भी मिलता है । (चूर्णकी मात्रा-३-४ माशे । उष्ण जलके २ योगतरङ्गिणीमें पिण्डारककी जडको ही पीने के साथ ।) लिए लिखा है, बन्देको नहीं । पीता। For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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