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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org - भैषज्य रत्नाकरः । [ २९८ ] (३९२७) पाठाद्यं चूर्णम् (७) ( र. र. । गुल्म ) पाठावचाशठीक्षारपथ्याग्निव्योषदाडिमम् । महाकञ्च त्रिफला कुष्ठयासाम्लवेतसम् ॥ मातुलुङ्गस्य मूलञ्च चूर्णमुष्णाम्बुना पिवेत् । मद्येन वा जयेद् गुल्मं हृद्रोगं शूलमाशु तत् || पाठा, बच, सठी ( कचूर ), जवाखार, ह चीता, सोंठ, मिर्च, पीपल, अनारदाना, बनअदरक, हर्र, बहेड़ा, आमला, कूठ, धमासा, अमलबेत और बिजौरे नीबूकी जड़की छाल समान भाग लेकर चूर्ण बनावें । इसे उष्ण जल या मद्यके साथ पीनेसे गुल्म, हृद्रोग और शूल शीघ्र ही नष्ट हो जाता है । ( मात्रा ---- - ३-४ माशे ) (३९२८) पाठाचं चूर्णम् (८) ( वं. से.; भै. र.; च. द. वृ. नि. र. । ग्रहणी. ) पाठाविल्वानलव्योषं जम्बुदाडिमघातकी । कटुकातिविषा मुस्ता दार्वी भूनिम्बवत्सकैः || सर्वैरेतैः समं चूर्ण कौटजं तण्डुलाम्बुना । सक्षौद्रेण पिबेच्छर्दिज्वरातीसारशूलवान् ।। हृद्दाहग्रहणीदोषारोचकानलसादजित् || भारत पाठा, बेलगिरी, चीता, सोंठ, मिर्च, पीपल, जामनकी छाल, अनारदाना, धायके फूल, कुटकी, अतीस, नागरमोथा, दारूहल्दी, चिरायता और कुड़ेकी छाल १-१ भाग तथा इन्द्रजौ सबके बराबर लेकर चूर्ण बनावें । इसे शहदके साथ चाटकर ऊपरसे चावलों का पानी ( तण्डुलोदक । देखो भा. भै. र. प्रथम भाग पृ. ३५३ ) पीना चाहिये । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ पकारादि इसके सेवन से छर्दि (वमन), ज्वर, अतिसार, शूल, हृदयकी दाह, ग्रहणी - विकार, अरुचि और अग्निमांद्यका नाश होता है । ( मात्रा -- ३-४ माशे । ) (३९२९) पाठां चूर्णम् (९) ( च. सं. । चि. अ. २६ ) पाठा रसाञ्जनं मूर्वा तेजोहेति च चूर्णितम् । क्षौद्रयुक्तं विधातव्यं गलरोगे भिषग्जितम् ॥ पाठा, रसौत, मूर्वा, और ज्योतिष्मति समान भाग लेकर चूर्ण बनावें । इसे शहद में मिलाकर सेवन करनेसे गलरोग नष्ट होते हैं । (३९३०) पाठामूलयोगः ( वं. से.; वृं. मा. । विद्रधि. ) शमयति पाठामूलं क्षौद्रयुतं तण्डुलाम्बुना पीतम् । अन्तर्भूतं विद्रधिमुद्धतमाश्वेव मनुजस्य ॥ पाठामूलके चूर्णको शहद में मिलाकर चाटें और ऊपरसे चावल का पानी ( तण्डुलोदक | देखो भा. भै. र. प्रथम भाग पृ. ३५३ ) पियें । इसके सेवन से भयङ्कर अन्तरविद्रधि भी शीघ्र ही नष्ट हो जाती है । ( मात्रा - - ३ - ४ माशे । ) पारदादिचूर्णम् रसप्रकरणमें देखिये । (३९३१) पारसीययमानीयोगः ( ग. नि.; वृं. मा. र. र. वं. से. । कृमिचि . ) पारसीययमानी पीता पर्युषितवारिणा प्रातः । गुडयुक्ता कृमिजाल कोष्ठगतं पातयत्याशु || १ " गुडपूर्वा " इति पाठान्तरम् । For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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