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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चूर्णपकरणम् ] तृतीयो भागः। [२९७] मूल, चव, चीता, सोंठ, नागरमोथा और सेंधा | (३९२५) पाठायं चूर्णम् (५) समान भाग लेकर चूर्ण बनावें। (ग. नि. । चूर्णा.) __इसे उष्ण जल के साथ पीनेसे पीडायुक्त पाठा सकृष्णा गजपिप्पली च आमातिसार नए होता है। निदग्धिका नागरचित्रकौ च । ( मात्रा--३-४ माशे।) सपिप्पलीमूलमजाजीरात्रि(३९२३) पाठाद्य चूर्णम् (३) मुस्तं च चूर्ण सुखतोयपीतम् ।। ( वा. भ. । उ. अ. २२) । हन्यात्रिदोषं चिरजञ्च शोफं। पाठादार्वीत्वक्कुष्ठमुस्तासमङ्गा ___ कुष्ठश्च चूर्णस्य हि सुप्रयोगात् ॥ तितापीताङ्गारोधतेजोवतीनाम् । पाठा, पीपल, गजपीपल, कटेली, सेांठ, चीता, चूर्णः सक्षौद्रो दन्तमांसार्तिकण्डू पाकस्रावाणां नाशनो घर्षणेन ॥ | पीपलामूल, जीरा, हल्दी और नागरमोथा समान ___ पाठा, दारुहल्दीकी छाल, कूठ, नागरमोथा, | भाग लेकर चूर्ण बनावें । मजीठ, कुटकी, हल्दी, लोध और मालकंगनी। इसे उष्ण जलके साथ सेवन करनेसे त्रिदोसमान भाग लेकर चूर्ण बनावें। पज और पुराना शोथ तथा कुष्ठ नष्ट होता है। इसे शहदमें मिलाकर मसूढों पर मलनेसे उनकी पीड़ा, खुजली, पाक और स्राव ( पाइरिया) ( मात्रा--३-४ माशे।) का नाश होता है। (३९२६) पाठाद्यं चूर्णम् (६) (३९२४) पाठाद्यं चूर्णम् (४) (ग. नि. । चूर्णा.) (वा. भ. । चि. अ. १९) । पाठा प्रतिविषा मुस्तं व्योषभूनिम्बवत्सकाः। पाठादारींवनिघुणेष्टाकटुकाभि | तिक्ताचित्रकदुस्पर्शास्तुल्यैस्तैः कुटजः समः ॥ मूत्रं युक्तं शक्रयवैश्चोष्णजलश्च । | गुडशीताम्बुना पीतो ग्रहणीहाऽग्निकारकः॥ कुष्ठी पीत्वामासमरूक्स्याद गुदकीली पाठा, अतीस, नागरमोथा, सोंठ, मिर्च, मेही शोफी पाण्डुरजीर्णी कृमिमांश्च ॥ पीपल, चिरायता, कुड़ेकी छाल, कुटकी, चीता पाठा, दारुहल्दी, चीता, अतीस, कुटकी और धमासा १-१ भाग तथा इन्द्रजौ सबके और इन्द्रजौ । समान भाग लेकर चूर्ण बनावें । इसे गोमूत्र या उष्ण जलके साथ सेवन बराबर लेकर चूर्ण बनावें । इसे समान भाग गुड़में करनेसे १ मासमें कुष्ट, अर्श, प्रमेह, शोथ, पाण्डु, | मिलाकर शीतल जलके साथ सेवन करनेसे ग्रहणी अजीर्ण और कृमिरोग नष्ट होता है । रोग नष्ट होता और अग्नि दीप्त होती है । ( मात्रा---३-४ माशे।) ( मात्रा--३ से ६ माशे तक ।) For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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