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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [२८१] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [पकारादि (३८३२) पिप्पल्यादिकषायः (१) चीता और बासा । इनके काथ में पीपलका पूर्ण (ग. नि. । ज्वर.) मिलाकर पीनेसे कफज खांसी नष्ट होती है। कृष्णाऽमिपथ्यामलकैः कषायः (३८३५) पिप्पल्यादिकाथः (२) कृतः समस्तज्वरहाग्निहेतुः। (वृ. नि. र. । बालरो.) व्याघ्रीगुडूचीपजोऽथ कास पिप्पलीरेणुकाकाथः सहिङ्गः समधुः कृतः। श्वासज्वरन्नश्च सपिप्पलीकः॥ हिकां बहुविधां हन्यादिदं धन्वन्तरेर्वचः ॥ पीपल, चौता, हर्र और आमले का काथ पीपल और रेणुकाके काथमें जरासा हींग सब प्रकारके ज्वरोंको नष्ट करता और अग्नि दीप्त मिलाकर उसमें शहद डालकर पीनेसे अनेक करता है। प्रकारका हिचकी रोग नष्ट होता है। (३८३६) पिप्पल्यादिकाथ: (३) ___ कटेली, गिलोय और बासेके काथमें पीपल (वं. से. । स्त्री.) मिलाकर पीनेसे खांसी, श्वास, और ज्वर नष्ट पिप्पली देवकाष्ठश्च आर्द्रकं गजपिप्पली। होता है। चित्रकं सैन्धवञ्चैव पिप्पलीमूलमेव च ॥ (३८३३) पिप्पल्यादिकषायः (२) सुखोष्णं योजयेदेतत्सूतिकारोगशान्तये । (ग. नि. । राजयश्मा.) वातिकं पैत्तिकांश्चैव श्लैष्मिकान्साभिपातिपिप्पलीविश्वधान्याकदशमूलीजलं पिबेत् । कान् ॥ पार्श्वशूलज्वरश्वासपीनसादिनिवृत्तये॥ सूतिकोपद्रवान्हन्ति पीतं हयेतन संशयः॥ ___पीपल, सांठ, धनिया और दशमूलका काथ पीपल, देवदारु, अदरक ( अभावमें सेठ), पोनेसे पसलीका दर्द, शूल, उचर, श्वास और गजपीपल, चीता, सेंधानमक और पीपलामूल का पीनसादि रोग नष्ट होते हैं। मन्दोष्ण काथ पीनेसे वातज, पित्तज, कफज और सन्निपातज मूतिकारोग अवश्य नष्ट हो (३८३४) पिप्पल्यादिक्वाथ: (१) जाता है। ( भा. प्र.; वृ. नि. र. । कासा.) (३८३७) पिप्पल्यादिकाथः (४) पिप्पली कट्फलं शुण्ठी शृङ्गी भाी तथोषणम्। (ग. नि.; वं. मा.; वृ. नि. र.; भै. र. । ज्वर.) कारखी कण्टकारी च सिन्दुवारो यवानिका ॥ | पिप्पलीसारिवाद्राक्षाशतपुष्पाहरेणुभिः । चित्रको वासकश्चैषां कपायं विधिवत्कृतम् । | कृतः कषायः सगुडो हन्याच्छ्वसनज ज्वरम् ॥ कफकासविनाशाय पिबेत्कृष्णारजोयुतम् ॥ पीपल, सारिवा, मुनक्का, सौंफ और रेणुकाके पीपल, कायफल, सोंठ, काकड़ासिंगी, भड्गी, | काथमें गुड़ मिलाकर पीनेसे वातवर नष्ट कालीमिर्च, कालाजीरा, कटैली, संभालु, अजवायन, होता है। For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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