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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [२७८] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [पकारादि पलाशशृङ्गाटककर्कटीनां | पीनेसे पुरानी प्रवाहिका (पेचिश ) भी ३ दिन बीजं कषायः सनिरुद्धमत्रे॥ में ही नष्ट हो जाती है। __ यदि मूत्रकृच्छू रोगमें मूत्र रुक जाय तो पखान- ( मात्रा–२-३ माशे ।) भेद, निसोत, हर्र, धमासा, पोखरमूल, गोखरु, । (३८२५) पिप्पलीकाथ: पलाश, (ढाकके फूल) सिंघाड़ा, और ककड़ीके (भै. २.; वृ. नि. र.; ग. नि.; भा. प्र. । ज्वरा.) बीजेांका काथ पिलाना चाहिये । पिप्पलीभिः शृतं तोयमनभिष्यन्दि दीपनम् । (३८२२) पिचुमन्दमूलयोगः वातश्लेष्मविकारघ्नं प्लीहघ्नं ज्वरनाशनम् ॥ (रा. मा. । वातरो.) पीपल डालकर पकाया हुवा पानी अनभिजरठपिचुमन्दमूलं पिष्टं शीतेन वारिणा पीतम् ष्यन्दि, दीपन, वात और कफ नाशक, तथा अपहरति वातदोष सन्धिकसंझं प्रकर्षेण ॥ | तिल्ली और ज्वरको नष्ट करनेवाला है। पुराने नीमकी जड़की छालको शीतल जलके । (२८२६) पिप्पलीमूलादिकाथः (१) साथ पीसकर पीनेसे सन्धिकवात (गठिया) (ग. नि. । शोथा.) नष्ट होती है। कफजे पिप्पलीमूलदारुचित्रकनागरैः । (३८२३) पिचुमन्दादिकाथः पानाहारविधौ शोथे सिद्धं पानीयमाचरेत् ॥ (वृ. नि. र. । ज्वर.) कफज शोथमें पीपलामूल, देवदारु, चीता पिचमन्दमहौषधान्वितावहतीपौष्करतिक्तकं | और सांठ से पका हुवा पानी पीना और इसी शठी। पानीसे बना हुवा आहारादि करना चाहिये। दृषकटफलकं कणा वरी कथितं वारि कफ- (प्रत्येक ओषधि १। तोला, पानी ८ शेर, दोष ज्वरं जयेत् ॥ ४ सेर) नीमकी छाल, सांठ, कटेली, पोखरमूल, (३८२७) पिप्पलीमूलादिकाथः (२) चिरायता, कचूर, बासा, कायफल, पीपल और ( रा. मा. । ज्वर.) शतावरका काथ कफज्वरको नष्ट करता है। | यः पिप्पलीमूलशिवाम्बुवाह(३८२४) पिप्पलीकल्क: व्याधिनशुण्ठीकटुरोहिणीनाम् । ( वं. से.; यो. र.; ग. नि.; वृं. मा. । अतिसा.) यः पर्पटोशीरविमिश्रितानां पयसा पिप्पलीकल्कः पीतो वा मरिचोद्भवः। कार्य पिवेत्पित्तसमुदभवोऽस्य । त्र्यहानिर्वाहिकां हन्याच्चिरकालसमुत्थिताम् ॥ ज्वरः शमं याति सतृट्समूर्च्छ पीपल या कालीमिर्चको पीसकर दूधके साथ स्तिक्तास्यतादाहयुतः क्षणेन ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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