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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org तृतीयो भागः । कषायप्रकरणम् ] पारिभद्र ( फरहद) के पत्तों के या टेसू अथवा धतूरेके रसमें शहद मिलाकर पीनेसे कृमि नष्ट होते हैं । (३८१६) पाषाणभेदकाथः ( वृ. नि. र. । अश्मरी . ) पीत्वापाषाण भिक्कार्य सशिलाजतुशर्करम् । पित्ताश्मरीं निहन्त्याशु वृक्षमिन्द्राशनिर्यथा ॥ पखानभेदके काथमें शिलाजीत और खांड मिलाकर पीने से पिसज अश्मरी शीघ्र ही नष्ट हो जाती है । (३८१७) पाषाणभेदादिकषायः (ग. नि. । मूत्रकृच्छ्र.) पाषाणभेदो मधुयष्टिरेला कृष्णाशिफैरण्डसिताटरूषाः । स्पृका स्वदंष्ट्रा च शिवासमेतैः कायो हरेदुः सह मूत्रकृच्छ्रम् ॥ पखानभेद, मुलैठी, इलायची, पीपलामूल, अरण्डकी जड़, सफेद बासा, स्पृक्का, गोखरु और हर्रका काथ भयङ्कर मूत्रकृच्छ्रको भी नष्ट कर देता है । (३८१८) पाषाणभेदादिकाथ : (१) ( वं. से. । अश्मरी. ) पाषाणभेदवरुणगोक्षुरकपोतवङ्गजः काथः । गिरिजतुगुडप्रगाढः कर्कटिकात्रपुसबीजयुक्तः ॥ पेयोssममवश्यं दुर्भेदामपि भिनत्ति योगवरः शिखरिणमिव शतकोटिः शतमन्योईस्तनिर्मुक्तः। पाषाणभेद ( पखान भेद ), बरनेकी छाल, गोवर, और ब्राह्मी । इनके काथमें शिलाजीत । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ २७७ ] और ककड़ी तथा खीरे के बीज मिलाकर उसे गुड़से मीठा करके पीनेसे दुर्भेद्य अश्मरी (पथरी) भी अवश्य नष्ट हो जाती है । (३८१९) पाषाणभेदादिकाथः (२) ( वृ. नि. र. 1 मूत्रकृ. ) पाषाणभेदकृतमालकघन्वयास पथ्यात्रिकण्टककषायनिषेवणेन । मध्वन्वितेन सहसा विरहं प्रयाति रुग्दाहबन्धसहितं किल मूत्रकृच्छ्रम् ॥ पखानभेद, छोटा अमलतास, धमासा, हर्र और गोखरुके काथमें शहद मिलाकर पीनेसे पीड़ा दाह और मूत्रावरोध युक्त मूत्रकृच्छ्र शीघ्र ही नष्ट हो जाता है । (३८२०) पाषाणभेदादिकाथ: (३) ( वं. से. ' | अश्म.; वृं. यो. त. । त. १०२; यो र.; वृ. नि. र. । मूत्रकृ . ) पाषाणभिवरुणगोक्षुरकोरुबूक क्षुद्राद्वयक्षुरकमूलकृतः कषायः । दध्ना युतो जयति मूत्रविबन्धशुक्र मुग्राश्मरीमपि च शर्करया समेताम् || पखानभेद, बरनेकी छाल, गोखरु, अरण्डकी जड़, कटेली, बड़ी कटेली और तालमखानेकी जड़ । इनके काथमें दही मिलाकर पीने से मूत्रावरोध, शुक्राश्मरी, और शर्करा का नाश होता है। (३८२१) पाषाणभेदादिकाथ: ( ४ ) ( यो. र.; वृ. नि. र. । मूत्रकृ. ) पाषाणभेदस्त्रिष्टता च पथ्या-दुरालभापुष्करगोक्षुरश्च | १६. से. मे वरुणका अभाव है । For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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