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कपायपकरणम् ]
तृतीयो भागः।
[२७५]
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पलासके बीजोंके स्वरसमें शहद मिलाकर । पाठा, नीमकी छाल, पटोलपत्र, हरे, बहेड़ा, पीनेसे या उनके कल्कको तक्रके साथ पीनेसे कृमि आमला, असना और धमासेके क्वाथमें गूगल नष्ट हो जाते हैं।
मिलाकर पीने से कफप्रधान अम्लपित्त नष्ट (३८०३) पलाशादिकाथ:
होता है। (यो. चि. । अ. ४)
(३८०६) पाठादिकाथ: (३) पलाशरोहीतकमूलपाठा
(वै. म. । पटल १ ) __कार्य विदध्यात्मदरे सपाण्डौ। पाठोशीरजलैः सिद्धः काथः स्यात् पाचन पीते सितेऽयं मधुसंप्रयुक्तं
ज्वरे। प्रसिद्धयोगः शतशोऽनुभूतः॥ नागराम्बुयवासैश्च पृथक् सिद्धः सपर्पटैः॥ पलास ( ढाक ) की छाल, रुहेड़ेकी जड़की पाठा, खस और सुगन्धवाला अथवा सांठ, छाल, और पाठा । इनके काथमें शहद मिलाकर सुगन्धबाला, धमासा और पित्तपापड़ेका क्वाथ पीनेसे पाण्डु और पीला तथा सफेद प्रदर नष्ट |
ज्वरपाचक है। होता है।
(३८०७) पाठादिकाथ: (४) __ यह एक प्रसिद्ध और सैंकड़ों बारका अनु- (वै. म. र. । पट. ६) भूत प्रयोग है।
पाठानागरदुःस्पृग्बिल्वाग्निषाब्दसंभृतः कायः। (३८०४) पाठादिकाथ: (१)
आमातिसारमस्येत् सावं सकर्फ सशूलञ्च ॥ (वृं. नि. र. । अतिसा.)
पाठा, सेठ, धमासा, बेलगिरी, चीता, बासा पाठाविषावत्सकमेघदारु
और नागरमोथा । इनका काथ कफ और शूलविडङ्गकामोचरसैः कषायम् ।
युक्त आमातिसार को नष्ट करता है। कृतं प्रभाते प्रपिबेद्गदार्ति
(३८०८) पाठादिकाथः (५) शोफातिसारार्णववाडवामिः ॥
(वं. से. । अतिसा.) पाठा, अतीस, इन्द्रजौ, नागरमोथा, देवदारु, पाठा वत्सकवीजानि चित्रकं विश्वभेषजम् । बायबिडंग, और मोचरस । इनका काथ प्रातःकाल पिबेन्निकाथ्य चूर्णानि कृत्वा चोष्णेन वारिणा।। पीनेसे सूजन और अतिसार नष्ट होते हैं। पित्तश्लेष्मातिसारघ्नं ग्रहण्यां शूलनुद्धितम् ॥ (३८०५) पाठादिकाथः (२) .
पाठा, इन्द्रजौ, चीता और सेठ । गर्म (वृ. नि. र. । अम्लपि.) पानीके साथ इनका चूर्ण या इनका काथ पीनेते पागनिम्बपटोलत्रिफलासनयासयोर्जयति। पित्तकफज अतिसार, ग्रहणी और शाल ना अधिकाफमम्लपित्तं सहितो गुग्गुलुना क्रमशः॥ होते हैं ।
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