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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [१६] भारत-भैषज्य रत्नाकरः। [दकारादि वृक्षकी छाल, जलपर्णी (सिरवाल), तथा कसेर ।। (२८९६) देवदादिकाथः (१) इनका काथ पीनेसे शुक्रप्रमेह नष्ट होता है। (वृ. नि. र.; वं. से. ।स्त्री; यो. र.; भा. प्र.। म. (२८९३) दूर्वादियोगः (ग. नि. । छय.) | सूति.; यो. त. । त. ७५) पित्तच्छर्दिवजेदुर्वातण्डुलोदकपानतः । देवदारु वचा कुष्ठं पिप्पली विश्वमेषजम् । धात्रीरसेन वा पीता सिता लाजा च हन्ति ताम् । कटफलमुस्तभूनिम्बतिक्ताधान्यहरीतकी ॥ दूर्वा (दूब) घासको तण्डुलोदक ( चावलोंके गजकृष्णा च दुःस्पर्शा गोक्षुरं धन्वयासकम् । पानी) के साथ पीसकर पीनेसे पित्तज छर्दि नष्ट वृहत्यतिविषा छिन्ना कर्कटें कृष्णजीरकम् ॥ होती है। ( मात्रा-६ माशे ) समभागान्वितैरेतैः सिन्धुरामठसंयुतम् । धानकी खील और मिश्रीके चूर्णको आमलेके क्वायमष्टावशेषन्तु प्रसूतां पाययेत्रियम्॥ रसमें मिलाकर चाटनेसे भी पित्तज छर्दि नष्ट हो शूळकासज्वरश्वासमृ कम्पशिरोऽतिनुत् । जाती है। युक्तं प्रलापतृड्दाहतन्द्रातीसारवान्तिभिः॥ ___ नोट---तण्डुलोदक बनानेकी विधि भा. भै. निहन्ति सूतिकारोगं वातपित्तकफोत्थितम् ॥ र. भाग १ में पृष्ट ३५३ पर देखिये । देवदारु, बच, कूट, पीपल, सेांठ, कायफल, | मोथा, चिरायता, कुटकी, धनिया, हर्र, गजपीपल, (२८५४) देवदारुक्षीरम् (यो. र. । शोफ.) धमामा, गोखरु, जवासा, कटेली, अतीस, गिलोय, क्षीरं शोफहरं दारुवर्षाभूनागरैः शतम् ।। पेयं वा चित्रकव्योपत्रिवृक्षारुप्रसाधितम् ।। | काकडासिंगी और कालाजीरा । सब चीजें समान | भाग लेकर एकत्र मिलाकर अधकुटी करलें। इसमें देवदारु, साठी (बिसखपरा--पुनर्नवा) और सोंठसे सिद्ध किया हुवा या चीता, सोंठ, मिर्च, से प्रतिदिन २ तोले लेकर ३२ तोले पानीमें पकाकर ४ तोले शेष रहने पर छानकर उसमें २ पीपल, निसोत और देवदारसे सिद्ध किया हुवा रत्ती हींग और १॥ माशा सेंधा नमक मिलाकर दूध पिलानेसे शोथ नष्ट होता है। पिलानेसे प्रसूता स्त्रीका शूल, खांसी, ज्वर, श्वास, (२८९५) देवदा दिकषायः मूर्छा, शरीर कांपना, शिरपीडा, प्रलाप, तृष्णा, (वै.जी. । वि.१) दाह, तन्द्रा, अतिसार और वमनयुक्त प्रसूत रोग मुरदारुशिवाशिवास्थिराविधैः कथितः (चाहे वह वायुसे उत्पन्न हुवा हो या पित्तसे अथवा कपायकः । मधुना सितया समन्वितः परिपीतः शमयेच्च- | कफसे ) नष्ट हो जाता है। तुर्थकम् ॥ (२८९७) देवदार्यादिकाथः (२) देवदारु, हर्र, आमला, शालपर्णी, बासा और (वृ. नि. र. । अति.; वै. जी.। विला. २) सेठिके काथमें शहद तथा मिश्री डालकर पीनेसे सदेवदारुः सबिषः सपाठः सजन्तुशत्रुः सघनः चातुर्थिक ज्वर नष्ट होता है। सतीक्ष्णः। For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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