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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - कषायमकरणम् तृतीयो भागः। [२७१] (३७७८) पथ्यादिकायः (७) महौषधं चातिविषा सुराहम् । ___ (वृ. नि. र.; यो. र.; ग. नि. । ज्वरा.) | जलेन निकाथ्य ततश्च पानं पथ्यास्थिरानागरदेवदारु गुल्मामयानां प्रतिपाचनश्च ॥ धात्रीपैरुत्कथितः कषायः । हर्र, मजीठ, पृष्टपर्णी, रास्ना, सोंठ, अतीस सितोपलामाक्षिकसम्पयुक्त और देवदारु । इनका काथ गुल्मको पकाता है। श्चातुर्थिक हन्ति अचिरेण पीतः ॥ । (३७८२) पथ्यादियोगः हर्र, शालपर्णी, सांठ, देवदारु, आमला और (ग. नि. । उदर.) बासा । इनके काथमें मिश्री और शहद मिलाकर पथ्यापुनर्नवादारुगुडूचीगुग्गुलुः समम् । पीनेसे 'चातुर्थिक' (चौथिया) ज्वर शीघ्रही नष्ट पिष्य गोमूत्रपीतानि नाशयन्ति जलोदरम् ।। हो जाता है। । हर्र, पुनर्नवा, देवदारु, गिलोय, और गूगल । (३७७९) पथ्यादिकाथः (८) इनको गोमूत्रमें पीसकर पीनेसे जलोदर नष्ट (यो. र. । स्त्री.) होता है। पथ्यामलकविभीतकविश्वौषधदारुरजनीनाम् । (३७८३) पथ्यायोगः सक्षौद्रलोध्रचूर्णः कायो हन्त्येव सर्व प्रदरम् ॥ (यो त. । त. ५६) हर, आमला, बहेड़ा, सेठ, देवदारु और | भृश्चैरण्डतैलेन कल्कः पथ्यासमुद्भवः । हल्दीके काथमें लोधका चूर्ण और शहद मिलाकर कृष्णासैन्धवसंयुक्तो ब्रनरोगहरः परः॥ पीनेसे सर्वदोषजमदर अवश्य नष्ट हो जाता है। हर्रको अरण्डके तेलमें भूनकर पानीके साथ (३७८०) पथ्यादिकापः (९) पीसकर उसमें सेंधानमक और पीपलका चूर्ण ___ (वृ. नि. र.; वं. से.। अतिसार.) मिलाकर सेवन करनेसे बध्न रोग नष्ट होता है। पथ्यामिकटुकापाठावचामुस्तकवत्सकैः। (३७८४) पद्मकादिकाथः (१) सनागरैर्जयेत्काथः कल्को वा श्लैष्मिकी सुतिम्।। (ग. नि. । ज्व.) हर्र, चीता, कुटकी, पाठा, बच, नागरमोथा, पद्मकं मधुपुष्पाणि यष्टीमध्वाटरूपकम् । इन्द्रजौ और सेठ । इनका काथ या कल्क सेवन उशीरद्वितयं द्राक्षा नीलोत्पलदलान्वितम् ॥ करनेसे कफज अतिसार नष्ट होता है । | आबालाच निषेव्योऽयं कायः कथितशीतलः। (३७८१) पथ्यादिपाचनकायः | वातपित्तज्वर मोहं प्रलापश्च यतो हरेत् ॥ (हा. सं. । स्था. ३ अ. ४) पनाक, महुवेके फूल, मुलैठी, बासा (अडूसा), पथ्यासमझाकलसीसरास्ना खस, सुगन्धबाला, मुनक्का और नीलकमलके पत्ते । For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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