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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[पकारादि
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इनके काथको ठंडा करके पिलानेसे बालकों और । (३७८८) पनकादिगणः बड़ेोका वातपित्तज्वर, मोह और प्रलाप नष्ट
(वा. भ. । सूत्र.) होता है।
पनकपुण्ड्री वृद्धितुगद्धर्थः (३७८५) पनकादिकाथः (२)
शृश्यभृतादशजीवनसंझा। (ग. नि. । ज्व.)
स्तन्यकराघ्नन्तीरणपित्त पब धान्यकं शुण्ठी पर्पटोशीरकद्वयम् ।
पीणनजीवनईहणवृष्याः ॥ एमिः कायः कृतः सद्यो देयः पित्तज्वरच्छिदे ॥
पभाक, पुण्डरिया, वृद्धि, बंसलोचन, ऋद्धि, पमाक, धनिया, सोंठ, पित्तपापड़ा, खस और सुगन्धबाला; इनका काध पीनेसे पित्तज्वर
काकड़ासिंगी, गिलोय, जीवनीय गण (जावन्ती, शीघ्र ही शान्त हो जाता है।
काकोली, क्षीरकाकोली, मेदा, महामेदा, मुद्गपर्णी;
माषपर्णी. ऋषभक, जौवक और मुलैठी )। (३७८६) पनकादिकाथः (३)
___ यह “ पनकादिगण" स्तन्य (दुग्धवईक), (च. सं. । चि. अ. ४)
वातपित्तनाशक, जीवन, व्रहण और वृष्य है। पत्रकं पद्मकिञ्जल्कं दूर्वा वास्तुकमेव च । नागपुष्पञ्च लोधश्च तेनैव विधिना पिबेत् ॥
(३७८९) पद्मोत्पलादिकायः पाक, कमलकी केसर, दूर्वा, बथुवा, नाग
(वृ. नि. र. । रक्त. पि.) केसर और लोध ।
पोत्पलानां किअल्कः पृष्ठिपर्णीमियाका । ___ इनका काथ पीनेसे रक्तपित्त शान्त | वासापत्रसमुद्भूतो रसः समधुशर्करः ॥ होता है।
काथो वा हरते पीतो रक्तपित्तं सुदारुणम् ॥ (३७८७) पनकादिकाथः (४)
पम ( कमल ) की केसर, पृष्ठपर्णी, फूल(भा. प्र. । म. खं. ज्व.) प्रियंगु, और बासे ( अडूसे) के पत्ते । इनके पअफचन्दनपर्पटमुस्त
स्वरस या काथमें शहद और मिश्री मिलाकर जातीजीवकचन्दनवारि।
पीनेसे भयङ्कर रक्तपित्त भी नष्ट हो जाता है। क्लीतकनिम्बयुतं परिपकं
(३७९०) परूषकादिकाय: वारि भवेदिह शोणितहारि ॥
(ग. नि.; भा. प्र. । ज्वरा.) पभाक, लाल चन्दन, पित्तपापड़ा, नागर- परूषकानि त्रिफला देवदारुं सकटफलम् । मोथा, चमेली, जीवक, सफेद चन्दन, सुगन्धबाला,
चन्दनं पद्यकश्चैव तथा कटुरोहिणी ॥ मुलैठी और नीमकी छालका काथ पीनेसे रक्तष्ठी- | पृथकर्षसमैः सिदसुपित' शीतलं पिवेत् । वी सभिपात में होने वाला रक्तस्राव बन्द पित्तोत्तरे नृणामेतत्सभिपाते चिकित्सितम् ।। होता है।
पृश्निपणीत स्वमिरिति पाठान्तरम् ।
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