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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[पकारादि
हर्र, पित्तपापड़ा, कुटकी, मुनक्का, देवदारु, । काथमें हींग, पीपल और अतीसका चूर्ण मिलाकर नागरमोथा, चिरायता, अमलतासका गूदा, पटोल- | पीनेसे वातज शूल, आमशूल और कफज शूल पत्र और आमला।
शीघ्र ही नष्ट हो जाता है। ___ इनका काथ चित्तभ्रम सनिपातको नष्ट (३७७६) पथ्यादिकाथा (५) करता है।
(वै. म. र. । पट. २) (३७७३) पथ्यादिकाथः (२)
पथ्याकटूफलनागराम्बुद्वचा(4. से. । अति.)
भूनिम्बधान्यद्रुमैपथ्याजाजीदुरालम्भाघोटाफलसमन्वितः।
| भीिपर्पटकान्वितैः मृतमिदं स्वरसोऽप्यथवा कल्कः पकातीसारनाशनः ॥
तोयं मुशीतं पुनः। हरे, जीरा, धमासा और बेर (या सुपारी)।
मध्वाढयं परमाणुरामठयुतं । इनके स्वरस या कल्कको सेवन करनेसे पक्काती
श्लेष्मज्वरं नाशयेत् सार नष्ट होता है।
कोष्ठातिश्वसनाग्निसादकसना(३७७४) पथ्यादिकाथः (३)
___रुच्यास्यशोषान्वितम् ॥ (कृ. नि. र.; वं. से. । अति.; हा. सं. । स्था. हरे, कायफल, सांठ, नागरमोथा, बच, चिरा
३ अ. ३; भा. प्र. । ख. २ अति.) यता, धनिया, इन्द्रजौ, भारंगी और पित्तपापड़ा; पथ्यादारुवचामुस्तै गरातिविषान्वितैः। इनके काथको शीतल करके उसमें शहद और जरा आमातिसारशुलन्नं दीपनं पाचनं परम् ॥ सा हींग मिलाकर पीनेसे उदरपीडा, श्वास, अग्नि ___ हर्र, देवदारु, वच, मोथा, सांठ और अतीस | मांध, खांसी,अरुचि और मुखशोषयुक्त कफज्वर का काथ आमातिसार और शूलको नष्ट करता है। यह दीपन और पाचन भी है।
(३७७७) पथ्यादिकाथः (६) (३७७५) पथ्यादिकाथः (४)
(वृ. नि. र. । सन्नि.) (वृ. नि. र.; यो. र. । शूलरो.)
पथ्यावृषारखधदारुतिक्ता
रास्नागुडूचीगदजः कषायः। पथ्यासशक्रयवपुष्करमूलयुक्ता
सोपद्रवाचान्तकनामधेयानिःकाथ्य हिङ्गजटिलातिविषासमेतम् ।
शुजाटलातावपासमतम् । ज्वराजरं मोचयतीति चित्रम् ॥ पीत्वा मुखोष्णमय वातकृतं हि शूल-
हर, बासा, अमलतास, देवदारु, कुटकी, मामोद्भवं कफकृतं च निहन्ति तूर्णम् ॥ रास्ना, गिलोय और कूट । इनका काथ उपद्रवयुक्त हरं, इन्द्रयव और पोखरमूलके मन्दोण अन्तकनामकसन्निपात ज्वरको नष्ट करता है।
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