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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - - - - कषायमकरणम् ] तृतीयो भागः। [ २६९] (३७६६) पटोलादिगण: (३) कायो हरीतकीसपिण्डेन (सु. सं. । सू. स्था. अ. ३८) पीतो निहन्ति गुदजानि ॥ पटोलचन्दनकुचन्दनमूर्वागुडूचीपाठाः तेजपात, नागकेसर, सेाठ, इलायची, तुम्बरु, कटुरोहिणीचेति ॥ धनिया, बायबिडंग, तिल और हरै । इनके काथमें पटोलादिर्गणः पित्तकफारोचकनाशनः । घी और गुड़ मिलाकर पीनेसे बवासीर (अर्थ) ज्वरोपशमनो व्रण्यश्च्छर्दिकण्डूविषापहः॥ नष्ट होती है। ___ पटोलपत्र, लालचन्दन, पतङ्ग, मूर्वा, गिलोय, (३७७०) पथ्यादिकषायः (१) पाठा और कुटकी । इन ओषधियोंके समूहको (र. र.; यो. र. । शोथ.; भा. प्र. । म. ख. "पटोलादि गण" कहते हैं। यह गण पित्त, शोथ; इ. यो. त. । त. १०६) कफ, अरुचि, ज्वर, छर्दि, खुजली और विषनाशक तथा घावों में लाभदायक है। . पथ्यामृताभानीपुनर्नवामि(३७६७) पटोलादिवमनयोगः दारूनिशादारुमहौषधानाम् । कायं प्रपीयोदरपाणिपाद(ग. नि. । विसर्प.) पटोलपिचुमन्दाभ्यां पिप्पल्या मदनेन च । रक्ताश्रितं हन्त्यचिरेण शोयम् ॥ हर्र, गिलोय, भारंगी, पुनर्नवा ( साठी), विसर्प वमनं शस्तं तथा चेन्द्रयवैः सह ॥ चीता, दारुहल्दी, हल्दी, देवदार और सेठ । पटोलपत्र, नीमकी छाल, पीपल, मैनफल इनका काथ सेवन करने से उदर, हाथ और पैरों और इन्द्रजौका काथ पीनेसे वमन होकर विसर्प का रक्ताश्रित शोथ शीघ्र ही नष्ट हो जाता है। रोग नष्ट हो जाता है। (३७७१) पथ्यादिकषायः (२) (३७६८) पटोलादिसेक: (ग. नि. । प्रमे.) (ग. नि. । अति.) पथ्योशीरशिवामुस्तानिशोत्पलसमुद्भवः । गुददाहे प्रपाके वा पटोलमधुकाम्बुना । सेकादिकं प्रशंसन्ति छागेन पयसाऽथवा ॥ काथो मधुयुतः पीतः प्रमेहं हन्ति पित्तजम् ॥ गुददाह और गुदपाकमें पटोलपत्र और । हरे, खस, आमला, नागरमोथा, हल्दी और मुलैठी के काथसे अथवा बकरीके दूधसे गुदाको | नीलकमल ( नीलोफर )। इनके काथमें शहद धोना चाहिये। मिलाकर पीनेसे पित्तजप्रमेह नष्ट होता है। (३७६९) पत्रकादिकाथः (३७७२) पथ्यादिकाथः (१) (हा. सं. । स्था. ३ अ. ११) (वृ. नि. र.; यो. र. । सन्नि.) पत्रकेसरशुण्ठीसमैला पथ्यापर्यटकटुकामद्वीकादारुजलदभूनिम्बाः। तुम्वरुधान्यविडङ्गतिलानाम् । शम्पाकपटोलशिवाकाथश्चित्तभ्रमं हन्ति ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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