SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 257
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [२६२] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [पकारादि कफवर, वातकफचर और रक्तपित्तज ज्वर नष्ट । मसूरीं शमयेदामं पकाश्चैव विशोधयेत् । होता है । मल टूट कर निकल जाता है और ! नातः परतरं किञ्चिद्विस्फोटज्वरशान्तये ॥ अग्नि प्रदीप्त होती है। पटोलपत्र, गिलोय, नागरमोथा, बासा, धमा(३७२४) पटोलादिकाथः (५) सा, चिरायता, नीमकी छाल, कुटकी और पित्त(ग. नि.; वृ. मा. । अम्ल.) | पापड़ा । इनका काथ आम (अपक) मसूरिका पटोलनिम्बामृतरोहिणीकृतं को शान्त और पक्कको शुद्ध करता है । विस्फोटजलं पिवेत्पित्तकफोच्छ्ये वा। ज्वरके लिये इससे अच्छी अन्य कोई भी औषध शूलभ्रमारोचकवनिमान्ध नहीं है। दाहज्वरच्छदिनिवारणञ्च ॥ (३७२७) पटोलादिकाथ: (८) पटोल, नीमकी छाल, गिलोय, और कुटकी। ( वा. भ. । चि. अ. १७) इनका काथ पित्तकफप्रधान अम्लपित्त, शूल, | पटोलमूलत्रायन्तीयष्ट्याकटुकाभयाः । भ्रम, अरुचि, अग्निमांद्य, दाह, वर और वमनको | दारु दार्वी हिमं दन्ती विशाला निचुलं कणा॥ नष्ट करता है। तैः काथः सघृतः पीतो हन्त्यन्तस्तापतृभ्रमान्। (३७२५) पटोलादिकाध: (६) ससन्निपातवीसर्प शोफदाहविषमज्वरान् ।। ( वृ. नि. र.; . मा. । उपदं.) पलवलकी जड़, त्रायमाणा, मुलहटी, कुटकी, पटोलनिम्बत्रिफलाकिरातः हरे, देवदार, दारुहल्दी, सफेद चन्दन, दन्ती, काथं पिवेद्वा खदिरासनाभ्याम् । | ( जमालगोटेकी जड़ ) इन्द्रायण, जलवेत, और सगुग्गुलं वा त्रिफलायुतं वा पीपल । इनके काथमें घृत मिलाकर पीनेसे अन्तसर्वोपदंशापहरः प्रयोगः ॥ स्ताप, पिपासा, भ्रम, सन्निपात, विसर्प, शोथ, पटोल, नीमकी छाल, हर्र, बहेड़ा, आमला | दाह और विषमज्वर नष्ट होता है । और चिरायता । इनके अथवा खैरसार और अस- (३७२८) पटोलादिकाथः (९) नाके काथमें गूगल या त्रिफला का चूर्ण मिलाकर (वा. भ. । चि. अ. २ ) पिलाने से सब प्रकारके उपदंश नष्ट होते हैं। पटोलमालतीनिम्बचन्दनद्वन्यपद्मकम् । (३७२६) पटोलादिकाथः (७) रोधो दृषस्तन्दुलीयः कृष्णामृन्मदयन्तिका ॥ (र. र.; ग. नि.; भै. र.; बूं. मा.; च, द.; यो. | शतावरी गोपकन्या काकोल्यौ मधुयष्टिका । र.; वं. से. । मरिका; . यो. त. । त. १२६) | रक्तपित्तहराः काथास्त्रयः समधुशर्कराः ॥ पोलकुण्डलीटस्पधन्वयवासकैः । (१) पटोलपत्र, चमेली, नीमकी छाल, सफेद अनिम्नलिम्बयाणां पौन शृतं जलम् ।। चन्दन, लालचन्दन और कमल । For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy