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कषायमकरणम् ]
तृतीयो भागः।
[२६३]
(२) लोध, बासा (अडूसा), चौलाईकी जड़, काली , (३७३१) पटोलादिकाथः (१२) मिट्टी, मदयन्तिका।
(वृ. नि. र. । ज्वर.) . (३) शतावर, सफेद सारिवा, काकोली, क्षीर- 1 पटोलत्रिफलातिक्तासठीवासामताभवः । काकोली और मुलैठी।
| काथो मधुयुतःपीतो हन्यात्कफकृतं ज्वरम् ॥ इन तीनों का से किसी एकमें शहद पटोलपत्र, त्रिफला, कुटकी, सठी ( कचूर ), और मिश्री मिलाकर पीनेसे रक्तपित्त नष्ट होता है। बासा और गिलोय । इनके काथमें शहद मिला)३७२९) पटोलादिकाथः (१०)
| कर पीनेसे कफज्वर नष्ट होता है । (वं. से. । ज्वरा.)
(३७३२) पटोलादिकाथः (१३) पटोल बालकञ्चैव मुस्तकं रक्तचन्दनम् ।।
(वं. से.; च. द. । मुख.; यो. त. । त. ६९) पाठा मूर्वामृता शुण्ठी चोशी कटरोहिणी॥ | पटोलनिम्बजम्ब्याम्रमालतीनां च पल्लवैः । समभागैः शृतं तोयं सर्वज्वरहरं पिबेत् ॥ कृतः काथः प्रयोक्तव्यो मुखपाकस्य धावने ॥ पटोलपत्र, सुगन्धवाला, नागरमोथा, लाल-.
पटोलपत्र, नीम, जामन, आम और चमेली चन्दन, पाठा, मूर्वा, गिलोय, सेठ, खस और |
और के पत्ते । इनके काथके कुल्ले करनेसे मुखपाक नष्ट कुटकी । इनका काथ समस्त प्रकारके ज्वरोको
हो जाता है। नष्ट करता है।
(३७३३) पदोलादिकायः (१४)
(. नि. र. । ज्वर.; यो. त.। त. २०; यो. (३७३०) पटोलादिकाथः (११) ।
चिं.। अ. ४; शा. सं. । म. ख, अ. २) (वं से. । ज्वर.)
पटोलत्रिफलानिम्बतृष्णान्विते वातकफार्तिशूले
द्राक्षाशम्पाकवासकैः। सश्वासकासारुचिवद्धविट्के । काथः सितामधुयुतो हितं जलं दीपनपाचनश्च
जयेदेकाहिकं ज्वरम् ॥ पटोलशुण्ठीयवपिप्पलीनाम् ॥
पटोलपत्र, हर, बहेड़ा, आमला, नीमकी
छाल, मुनक्का, अमलतासका गूदा और बासा । पटोलपत्र, सोंठ, इन्द्रजौ और पीपलका इनके काथमें मिश्री और शहद मिलाकर पीनेसे काथ तृष्णायुक्त वातकफज्वरको नष्ट करता तथा 'इकतरा' ज्वर नष्ट होता है। अर्ति (बेचैनी) शूल, श्वास, खांसी, अरुचि, (३७३४) पटोलादिकाथः (१५) और मलवद्धता (मलका अत्यन्त कठिन होना- (वृ. नि. र.; वं. से. । ज्वर.) अर्थात् सुद्दे) को नष्ट करता है। यह दीपन पाचन पटोलेन्द्रयवानन्तापथ्यारिष्टामृताजलम् ।
कथितं तज्जलं पीतं ज्वरं सन्ततकं जयेत् ।।
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