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भारत-मैषज्य रत्नाकरः।
[पकारादि
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(३७१५) पटोलचतुष्क:
मलनेसे छोटे छोटे दाने से हो जाते हैं वही पीपल (यो. स. । स. ३)
के चावल कहलाते हैं ) सबको पीसकर मन्दोपटोलतिक्तापिचुमन्दपथ्या
ष्ण पानीमें मिलाकर बालकको पिलाने से आमा__ शृतकषायः कफपित्तजातः । तिसार नष्ट होता है। ज्वरो विनश्येन्मधुनाटरूप
(३७१८) पटोलमूलादियोगः शुण्ठीपटोलीत्रिफलाभिरेव ॥
(च. सं. । चि. अ. ५; ग. नि. । कु.) पटोल, कुटकी, नीमकी छाल और हर्र का |
मूलं पटोलस्य तथा गवाक्ष्याः काथ या बासा ( अडूसा), सांठ, पटोल और | त्रिफलेका काथ शहद मिलाकर पीनेसे कफपित्तज
पृथक् पलांशं त्रिफलात्वचश्च । ज्वर नष्ट होता है।
स्यात् त्रायमाणा कटुरोहिणी च (३७१६) पटोलमूलादिकाय:
भागाद्धिका नागरपादयुक्ता ॥
पलं त्वथैकं सहचूर्णितानां (र. र.; . मा. । मसू.; यो. त. । त. ६७)
जले श्रृतं दोषहरं पिबेना। पटोलमूलारुणतण्डुलीयकं
कुष्ठानि शोफ ग्रहणीमदोषं तथैव धात्रीखदिरेण संयुतम् । पिवेजलं मुकथितं मुशीतलं
अशीसि कृच्छ्राणि हलीमकश्च ।। ममूरिकारोगविनाशनं परम् ॥
षडात्रयोगेन निहन्ति चैव
हृद्वस्तिशूलं विषमज्वरश्च ॥ पटोल (परवल) की जड़ और लाल चौलाईकी जड़ एवं खैरसार और आमलेका काथ ठण्डा
पटोलमूल, इन्द्रायणकी जड़, हर्र, बहेड़ा और करके पीनेसे मसूरिका रोग शान्त होता है।
आमले की बकली ५-५ तोले, त्रायमाणा और
| कुटकी २॥२॥ तोले तथा सेठ १ तोला लेकर (३७१७) पटोलमूलादिप्रयोगः
सबको एकत्र मिलाकर अधकुटा कर लें । (वं. से. । बालरो.) पिष्टा पटोलमूलञ्च शृङ्गवेरं वचामपि ।
इसमेंसे ५ तोले चूर्णको ४० तोले पानीमें विडनान्यजमोदाश्च पिप्पलीतण्डुलान्यपि ॥ पकाकर १० तोले शेष रहने पर छानकर रोगीको एतान्यालोच्य सर्वाणि मुखतोन वारिणा। पिला दें। आमभवृत्तेऽतीसारे कुमारं योजयेद्भिषक् ॥ इसके सेवन से कुष्ठ, शोथ, ग्रहणी, अर्श, ___ पटोलकी जड़, सांठ, बच, बायबिडंग, अज- हलीमक, हृदय और वस्तिका शूल तथा ज्वर ६ मोद और पीपलके चावल। (पीपलको दूधमें भिगोकर । दिनमें ही नष्ट हो जाता है।
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