________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
मूली बलासिद्धं क्षीरं वातामये हितम् ।
कषायप्रकरणम् ]
( ओषधियां २ ॥ तोले, दूध २० तोले, पानी ८० तोले । सबको मिलाकर पानी जलने तक पकावें । मिश्री १| तोला, शहद १| तोला ।) (३७१०) पञ्चमूल्यादिक्षीरम् (२)
( वं. से. । वातव्या . )
तृतीयो भागः ।
( भोषधियां २ ॥ तोले, दूध २० तोले, पानी ८० तोले । सबको मिलाकर पानी जलने तक पकावें और छान लें । ) (३७११) पञ्चमूलाद्याइच्योतनम्
( वृं. मा. । तृष्णा. )
कोलदाडिमवृक्षालचुकीका चुक्रिकारसः ।
पञ्चमूल ( बेल, अरलु, खम्भारी, पाढल और | पञ्चामलको मुखालेपः सग्रस्तृष्णां नियच्छति || अरणी की छाल) और खरैटीसे सिद्ध दूध वातव्याधिको नष्ट करता है ।
( शा. ध. । खं. ३ अ. १३ ) बिल्वादिपञ्चमूलेन हत्येरण्ड शिश्रुभिः । काय आश्च्योतने कोष्णो वाताभिष्यन्दनाशनः ।।
बेलफी छाल, अरलुकी छाल, खम्भारीकी छाल, पाढलकी छाल, अरणीकी छाल, कटेला, अरण्डकी जड़ और सहजनेकी छाल के काथ को
में टपकाने से वातज अभिष्यन्द नष्ट होता है । नोट -- काथको अत्यन्त स्वच्छ कपड़े से छानकर मन्दोष्ण व्यवहृत करना चाहिये । (३७१२) पञ्चवल्कलादिकाथः
( वृं. मा. भा. प्र. यो. र. । मुख. ) पञ्चवल्कलजः काथत्रिफलासम्भवोऽथवा । मुखपाके प्रयोक्तव्यः सक्षौद्रो मुखधावने ॥
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
[२५९ ]
पचवल्कल ( पीपल, पाखर, गूलर, बड़ और बेतकी छाल ) या त्रिफलाके काथ में शहद मिलाकर कुल्ले करने से मुखरोग ( मुख पाकादि ) नष्ट होते हैं ।
(६७१३) पञ्चाम्लयोगः
बेर, अनार, इमली और चूकावासका रस तथा कांजी समान भाग लेकर सबको एकत्र मिलाकर मुखमें लेप करने से तृष्णा शीघ्रही शान्त हो जाती है।
(३७१४) पटीरादिकाथ:
( भा. प्र. । दाह; वृ. यो त । त. ८७ ) पटीरपर्पटोशीरनीरनीरदनीरजैः
मृणाल मिशिधान्याकपद्मकामलकैः कृतः । अर्द्धशिष्टः सिताशीतः पीतः क्षौद्रसमन्वितः काथो व्यपोहयेद्दाहं नृणाञ्च परमोल्वणम् ।।
सफेद चन्दन, पित्तपापड़ा, खस, सुगन्धबाला, नागरमोथा, कमल, मृणाल, सौंफ, धनिया, पाक और आमला । सब चीजें समान भाग मिली हुई २ तोले लेकर २० तोले पानी में पकावें । आधा पानी रहने पर उसमें ( १ तोला ) मिश्री मिला कर ठंडा करके ( १ तोला ) व मिला कर पिलाने से अत्यन्त नहीं हुई दी शान्त हो जाती है ।
For Private And Personal Use Only