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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [२५४] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [पकारादि - (३६८५) निर्गुण्डीमूलचर्वणम् (३६८७) निशादिप्रयोगः (रा. मा. । मुखरो.) (यो. र.; ग. नि. । नेत्र.; वं. से. । शिरो.; शेफालिकामूलमुशन्ति कण्ठ . मा. । नेत्ररो.) शालूकहन्त प्रतिचर्वितं सत । निशाब्दत्रिफलादावीसितामधुसमन्विता । रोग निहन्न्यादुपजिहिकाख्यं अभिघातातिशूलग्नं नारीक्षीरेण पूरणम् ॥ नासान्तरमसुतरक्तधाराम् ॥ हल्दी, नागरमोथा, त्रिफला, दारुहल्दी और निर्गुण्डीकी जड़को चबानेसे कण्ठशालक, मिश्रीका अत्यन्त महीन चूर्ण तथा शहद १-१ उपजिह्वा और नकसीर (नाकसे रक्त स्राव होना) भाग लेकर सबको स्त्रीके दूधमें मिलाकर छानकर का नाश होता है। उसकी बूंदें आंखमें टपकाने से नेत्रशूल नष्ट (३६८६) निर्गुण्डीमूलबन्धनम् होता है। ___(रा. मा. । बालरो.) [३६८८) निशादिवतिः पाचीगतं पाण्डुरसिन्दुवार (र. र.। भगन्दर.) मूलं शिशूनां गलके निबद्धम् ।। निशासैन्धवसिद्धार्थक्षौद्रगुग्गुलुसंयुता। करोति दन्तोद्भववेदनाया वतिर्भगन्दरे योज्या तथा नाडीव्रणापहा ॥ निःसंशयं नाशमकाण्डमेव ।। हल्दी, सेंधा नमक, सरसों और गूगल तथा पूर्व दिशामें उगे हुवे सफेद संभालुकी जड़को | शहद समान भाग लेकर चूर्ण योग्य चीजोंका चूर्ण बालकांके गलेमें बांधनेसे दांत निकलनेके समय | करके उसमें शहद और गूगल मिलाकर बत्ती बनावें होने वाली पौड़ा शान्त हो जाती है। यह बत्ती भगन्दर और नासूरको नष्ट करती है। इति नकारादिमिश्रप्रकरणम् । For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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