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मिश्रप्रकरणम् ]
तृतीयो भागः।
[२५३]
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__ स्त्रीका दूध पीनेसे ज्वर शीघ्र ही नष्ट हो । और वेतकी छाल के काथसे घावोंको धोना, इन्हीं जाता है।
को पीसकर लेप करना, इन्हींका चूर्ण घावों पर (३६७९) निम्बपत्रादियोगः
छिड़कना और इन्हीं से घृत पकाकर खिलाना (वं. से. । नेत्ररोगा.)
चाहिये। मिम्बपत्रैः कृतं चूर्ण लोध्रचूर्णसमन्वितम् । | (३६८२) निम्बादिवर्तिः वखवद्धं जले क्षिप्तं पूरणं नेत्ररोगनुत् ॥
(यो. र. । व्र.) ___ नीमके पत्ते और लोधके समान भाग मिश्रित | निम्बपत्रघृतक्षौद्रदार्वीमधुकसंयुता। चूर्णको पोटलीमें बांधकर उस पोटलीको पानीमें | वर्तिस्तिलानां कल्को वा शोधयेद्रोपयेवणम् ॥ भिगोए रक्खें । इस पानीको आंखों में डालनेसे | नीमके पत्ते, दारुहल्दी, मुलैठी और तिल ( अक्षिपाकादि) नेत्र रोग नष्ट होते हैं। १-१ भाग लेकर सबको पीसकर उसमें १-१ (३६८०) निम्बादिपिण्डी
भाग घी और शहद मिला लीजिये । इस कल्कको
लगाने या इसकी बत्ती बनाकर घावमें भरनेसे घाव (वं. से.; यो. र; वृ. नि. र. । नेत्ररो. )
शुद्र हो कर भर जाता है। निम्बस्य चोदुम्बरवल्कलस्य
(३६८३) निम्बुपानकः एरण्डयष्टीमधुचन्दनस्य।
(वृ. नि. र. । अरुचि.) पिण्डी विधेया नयने प्रकोपिते
भागैकं निम्बुजं तोयं षड्भागं शर्करोदकम् । कफेन पित्तेन समीरणेन ॥
लवङ्गमरिचोन्मिश्रं पानकं पानकोत्तमम् ॥ नीम और गूलरकी छाल, अरण्डकी जड़, | निम्बृरसभवं पानमत्यम्लं वातनाशनम् । मुलैठी और चन्दन की पिण्डी ( पोटली ) बनाकर वह्निदीप्तिकरं रुच्यं समस्ताहारपाचकम् ॥ नेत्रोंपर लगानेसे कफज, पित्तज तथा वातज नेत्रा- १ भाग नीबूका रस ६ भाग खांडके शरबतभिष्यन्द नष्ट होता है।
में मिलाकर उसमें यथारुचि लौंग और काली (३६८१) निम्बादिप्रयोगः
मिर्च का चूर्ण मिला लीजिये।
यह पानक अत्यम्ल, वातनाशक, अग्निदीपक, (. मा.; वं. से. । उपदंश)
रोचक, और सर्व प्रकारके आहारों को पचाने निम्बार्जुनाश्वत्थकदम्बशाल
वाला है। जम्बूवटोदुम्बरवेतसैश्च । (३६८४) निर्गुण्डीप्रयोगः प्रक्षालनालेपघृतानि कुर्या
(गो. र.; वृ. नि. र. । मुखरो.) चूर्णश्च पित्तास्रभवोपदंशे॥ निर्गुण्डीमुसलीकन्दं चर्वयेदुपजिह्वापशान्तये । पित्तज तथा रक्तज उपदंश में नीम, अर्जुन, सम्भालूकी जड़ या मूसलीको चबानेसे उपपीपल वृक्ष, कदम्ब, शाल, जामन, बड़, गूलर | जिह्वा नष्ट होती है ।
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