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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - - [२४२] भारत-भैषज्य-त्वाकरः। [ नकारादि मुस्वा प्रत्येकमेतानि ग्रयाणि पलमात्रया ॥ । इसे शीतल जलके साथ सेवन करने से तानि संक्षुध सर्वाणि जलाढकयुगे पचेत् । आध्मान, शूल, आनाह, प्रत्याध्मान, उदावत, सुल्म, तत्र तोयेष्टमे भागे कषायमववारयेत् ॥ और अन्य उदररग शान्त होते हैं। नित्यग्जैपालबीजानि नवानि पलमात्रया। इससे विरेचन हो जानेके पश्चात् दही में बनुक्स्नधृतान्येव बस्मिन् काथे शनैः पचेत् ॥ खांड या सेंधानमक मिलाकर अथवा दहीभात ज्वालयेदनले मन्दं यावत्काथो धनो भवेत् । । खाना चाहिये । ततः खल्वे सिपेद्भागानष्टौ जैपालबीजतः॥ (३६४९) नारायणज्वराशरसः भागांस्त्रीनागराद्वौच मरिचाद्वौ च पारदात्।। (र. चं.; यो. र. । ज्वर.) गन्धकाद् द्वौ च तानीह यावद्यामं विमर्दयेत् ॥ सोमलं वत्सनागश्च मूतगन्धकतालकम् । रसो नाराचनामार्य भक्षितो रक्तिका मितः । कदुत्रयं कपर्दी च विजया कनकस्य च ॥ जलेन शीतलेनैव रोगानेतान् विनाशयेत् ॥ टङ्कणं समभागानि शृङ्गवेररसैस्त्र्यहम् । आध्मानं शूलमानाहं प्रत्याध्मानं तथैव च । | शीतज्वरे सन्निपाते विधूच्यां विषमज्वरे ॥ उदावत तथा गुल्ममुदराणि च नाशयेत् ॥ नाशयेदतिवेगेन धान्यमात्र प्रदापयेत् । वेगे शान्ते च भुञ्जीत शर्करासहितं दधि ।। वस्त्रमाच्छादयेत्तेन प्रस्वेदोऽयं प्रजायते ॥ ततस्सत्सैन्धवेनापि ततो दध्योदनं मनाक ॥ पथ्य यदिच्छया देय दघिशीतोदकादिकम् । हरे, अमलतासका गूदा, आमला, दन्तीमूल, | रसो नारायणो नाम सभिपातज्वरापहः॥ कुटकी, सेंड (सेहुंड-थोहर) का दूध, निसोत शुद्ध सोमल ( संखिया ), शुद्ध वछनाग और नागरमोथा । यह सब चीजें एक एक पल (मीठातेलिया), पारा, मन्धक, शुद्ध हरताल, सेठि, (५-५ तोले ) लेकर सबको अधकुटा करके मिर्च, पीपल, कौड़ीभस्म, भांग, धतूरेके शुद्ध बीज, १६ सेर पानीमें पकावें और २ सेर पानी शेष | और सुहागा समान भाग लेकर प्रथम पारे गन्धक रहने पर काथको छान लें । तत्पश्चात् ५ तोले | की कज्जली बनावें तत्पश्चात् उसमें अन्य ओषजमालगोटेकी शुद्ध गिरीको बारीक बस्त्रमें बांध धियोंका चूर्ण मिलाकर ३ दिन तक अदरकके कर उस काथमें डाल कर पुनः मन्दाग्निपर पकावें। रसमें घोट कर धनियेके दानेके बराबर गोलियां जब काथ गाढ़ा हो जाय तो एक खरल में ८ / बना लें। पल शुद्ध जमालगोटा, ३ पल सेोठका चूर्ण, २ इनके सेवनसे शीतञ्चर, सन्निपात, वित्रिका पल काली मिर्चका चूर्ण और २-२ पल पारे | और विषम ज्वर आदि नष्ट होते हैं । गन्धक से बनी हुई कजली तथा यह काथ डाल- | औषध खिलानेके पश्चात् रोगीके शरीरको कर १ पहर तक घोट कर १-१ रत्तीकी | वससे ढांप देना चाहिये, इससे पसीना अकर गोलियां बना लें। ज्वर उतर जाता है। For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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