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रसमकरणम् ]
तृतीयो भाग।
[२४१]
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बैल और गायफा दूध लेकर सबको एकत्र मिलाकर ऊपर अरण्य उपलोंकी धीमी अग्नि (१ पहर तक) एकावें । जब दूध जल जाय तो तैलको छान है। जलावें । तत्पश्चात् गरेके स्वांग शीतल होने पर तत्पश्चात् बहेडे, मूशिरीष और पलाशके पश्चाङ्ग का उसमें से गोलेको निकालकर पीस लें। समभाग मिश्रित चूर्ण या कजली को उपरोक्त इसमें से १ रत्ती दवा ठण्डे पानीके साथ तैल में घोटकर गोलियां बनावें ।
खाने से उस समय तक विरेचन होता रहता है
जब तक कि गरम पानी नहीं पिया जाता। ___ इन्हें शहद और घीके साथ सेवन करनेसे
पथ्य-दहीभात । जिह्वक सन्निपात नष्ट होता है। ___ मात्रा ४ माशे । ( व्यवहारिक मात्रा-२ से । (३६४७) नाराचरसः (७) ४ रत्ती तक ।)
(र. का. धे. । उदावर्त.) (३६४६) नाराचरसः (६)
कृष्णा शुण्ठी त्रिदृच्छयामा कम्पिल्लकहरीतकी। (वृ. यो. त. । त. ८)
| रसगन्धौ समं सवै नेपाल सवेतुल्यकम् ॥
| मर्दयेइन्तिजरसै रसो नाराचसञ्जितः । तुल्यं पारदटङ्कणं समरिचं गन्धाश्मतुल्यं त्रिमि-: विश्वं च त्रिगुणं ततो नवगुणं जैपालवीज जीर्णज्वरं निहन्त्येव शर्कराजीरकान्वितः ।
TH सर्वोदावर्त्तहृद्रोगशूलगुल्मानुरोग्रहम् ॥ क्षिपेत् ।।
... पीपल, सोंठ, निसोत, कालीनिसोत, कबीला, खल्वे दण्डयुगं विमर्थ विधिवत्सन्यस्य पर्णे
हरे, पारा और गन्धक १-१ भाग तथा शुद्ध
. ततः स्विनं गोमयवहिना स तु भवेमाराचनामा
जमालगोटा सबके बराबर लेकर प्रथम पारे गन्धक
की कजली बना लें तत्पश्चात् उसमें अन्य ओष
रसः॥ गुजैकपमितो रसो हिमजलैः संसेविवो रेचयेत्
धियोंका चूर्ण मिलाकर सबको दन्तीमूलके काथमें
घोटकर (१-१ रत्तीकी ) गोलियां बनावें । यावभोष्णजलं भजेत्खलु नरो भोज्यं तु दध्यो
इसके सेवन से उदावर्त, हृदोग, शूल, गुल्म,
दनम् ॥ उरोग्रह और जीर्णचर नष्ट होता है । से. वि. पारा, सुहागेकी खील, और कालीमिर्च १-१ गोलीको तोड़कर (१-१ माशा ) जीरे और भाग, गन्धक और सोंठ ३-३ भाग तथा शुद्ध | खांड के चूर्ण में मिलाकर ( ठण्डे पानीके साथ) जमाल गोटा ९ भाग लेकर प्रथम पारे गन्धककी | खाना चाहिये । फज्जली बनावें तत्पश्चात् उसमें अन्य औषधियों । (३६४८) नराचरसः (महान्) (८) का चूर्ण मिलाकर अच्छी तरह घोटकर सबका (वै. रहस्य । वात व्या.; वृ. यो. त.; एक गोला बनावें और उसे पानों में लपेट कर
भा. प्र. । गुल्म.) एक गढ़ेमें रक्खें एवं उसे मिट्टीसे ढककर उसके ! अभयारग्वधो धात्री दन्ती तिता स्तुदी वि।
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