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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - [२४०] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [ नकारादि थोड़ा थोड़ा ठण्डा पानी पीनेसे सुख पूर्वक । गन्धकं पिप्पली शुण्ठी द्वौ द्वौ भागी विचूर्णविरेचन हो जाता है । यदि औषधसे पेटमें येत् ॥ दाह हो तो भी ठण्डा पानी ही पीना चाहिये । सर्वतुल्यं क्षिपेदन्तीबीजं नस्तुपमेव च । और विरेचन हो जानेके पश्चात् तीसरे द्विगुञ्जओ रेचने सिद्धो नाराचोऽयं महारसः । पहर मंगकी खिचड़ी खानी चाहिये । गुल्मप्लीहोदरं हन्ति पिबेत्तण्डुलवारिणा । (३६४३) नाराचरसः (३) पारा, सुहागेकी खील, और कालीमिर्चका ( यो. चिं. । अ. ३ ) | चूर्ण १-१ भाग; गन्धक, पीपल और सोंठ २-२ अष्टौ निस्तुपदन्तिबीजकलिका भागत्रयं ना भाग तथा शुद्ध जमालगोटा इन सबके बराबर गरात् । | लेकर प्रथम पारे गन्धककी कज्जली बनावें, तत्पद्वौ गन्धान्मरिचानि टङ्कणरसा एकैकभागाः श्चात् उसमें अन्य ओषधियां मिलाकर खरल करें। क्रमात् ।। ! इसे सेवन करनेसे विरेचन होकर गुल्म, प्लीहा गुञ्जामानवटी विरेचनकरी देया सुशीताम्बुना । और अन्य उदर रोग नष्ट होते हैं । गुल्मप्लीहमहोदरातिशमनो नाराचनामा रसः।। भात्रा-२ रत्ती । अनुपान चावलेोका पानी ___ शुद्ध जमाल गोटा ८ भाग, सोंठका चूर्ण ( तण्डुलोदक)। ३ भाग, शुद्ध गन्धक २ भाग,तथा काली मिर्चका नोट- ( प्रयोग सं. ३६४२ के नीचे वाला नोट चूर्ण, सुहागेकी खील और पारा १-१ भाग लेकर देखिये ।) प्रथम पारे गन्धककी कजली बनावें तत्पश्चात् (३६४५) नाराचरसः (५) उसमें अन्य ओषधियां मिलाकर पानीके साथ घोट (र. का. धे.; र. रा. मुं. । कुष्ठ.) कर १-१ रत्तीकी गोलियां बनालें । इनमें से १-१ गोली ठण्डे पानीके साथ लशुनं राजिका नीली भानुचित्रकपल्लवान् । देनेसे विरेचन होकर गुल्म 'प्लीहा और अन्य उदर समं भल्लातकं चूर्ण क्षिपेत्तैले चतुर्गुणे॥ रोग नष्ट होते हैं। तैलतुल्यैर्गवां क्षीरैः पचेत्तैलावशेषकम् । (प्रयोग सं.३६४२ के नीचेका नोट देखिये) । पश्चात्पश्चाङ्गमक्षस्य भूशिरीपपलाशयोः ।। (३६४४) नाराचरसः (४) सुवस्त्रगालितं कुयोत्तत्तुल्यं वा मूछितं रसम् । (भै. र.; धन्वं.; र. का. धे.; यो. २. । उदरा.; घृतक्षौद्रसमायुक्तं पूर्वतैलेन पिण्डितम् ॥ र. मं. । अ. ७; रसें. चिं. । अ. ९; वृ. यो. | अयं नाराचको भक्ष्यो निष्कैकं जिहकान्तकृत्।। त. । त. १०५; शा. सं. म. ख. । अ. १२; । ल्हसन, राई, नीली (नीलका पौदा ) तथा यो. त. । त. ५३) | आक और चीतेके पत्ते, १-१ भाग, भिलावा इन सूतं टङ्गनतुल्यांशं मरिचं मूततुल्यकम् । । सबके बराबर एवं इनसबसे ४-४ गुना तिलका For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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