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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसपकरणम् तृतीयो भागः। [२३९] निशादल त्रिक्षारं लोई शुल्वं तथाभ्रकम् ॥ । ताम्रभस्म, पारा, गन्धक, शुद्ध जमालगोटा, एतानि समभागानि स्नुहीक्षीरेण मर्दयेत् । हर्र, बहेड़ा, आमला, सोंठ, मिर्च और पीपल । चित्रकं पासकं दन्ती काषेनैकेन मर्दयेत् ॥ | सब चीजें समान भाग लेकर प्रथम पारे गन्धककी दिनेकन्तु प्रयत्नेन रसो नागेश्वरो मतः। । कजली बना लीजिये तत्पश्चात् उसमें अन्य गुल्मप्लीहपाण्डशोथानाध्मानश्च विनाशयेत् ॥ | ओषधियोंका चूर्ण मिलाकर रखिये। मायेन्मापमेकन्तु पर्णखण्डेन गुल्मवान् ॥ इसमें से नित्य प्रति ५ माशे औषध शहदमें ___ पारा, गन्धक, सीसाभस्म, वङ्गभस्म, शुद्ध | मिलाकर खानेसे गुल्म रोग नष्ट होता है। मनसिल, हल्दीके पत्ते, सज्जीखार, यवक्षार, सुहागा, ( व्यवहारिक मात्रा-३-४ रत्ती।) लोहमस्म, ताम्रभस्म, और अभ्रकभस्म बराबर | नोट-इस रसको खानेके पश्चात् थोड़ी थोड़ी बरावर लेकर प्रथम पारे और गन्धक की कज्जली | ___ देर बाद थोड़ा थोड़ा ठण्डा पानी पीनेसे बना लीजिये, तत्पश्चात् उसमें अन्य ओषधियां सुखपूर्वक विरेचन हो जाता है मिलाकर एकदिन स्नुही (सेंड-सेहुण्ड ) के दूधमें (३६४२) नाराषरसः (२) और एक दिन चीता, बासा तथा दन्तीमूलमें से किसी एकके काथमें घोट लीजिए। (वै. रह. । उदावर्त.; वृ. यो. त. । त. ९६; यो. र. । आनाह) इसमें से १-१ माषा औषध पानमें रखकर खानेसे गुल्म रोग नष्ट होता है । इसके अतिरिक्त | जैपालेन समैः सूतव्योषटकणगन्धकैः । उचित अनुपानके साथ देनेसे यह प्लीहा, पाण्डु, नाराचः स्याद्रसो इत्यस्य माषः सर्पिःसितायुतः।। शोथ और आध्मानको भी नष्ट करता है । ( व्यव- | हन्त्युदावत्तेमानाहमुदराध्यान्गुल्मकम् ॥ हारिक मात्रा २-३ रत्ती) पारा, सोंठ, मिर्च, पीपल, सुहागेकी खील और गन्धक १-१ भाग तथा शुद्ध जमालगोटा नायिकाचूर्णम् इन सबके बराबर लेकर प्रथम पारे गन्धककी कज्जली 'लाईचूर्णम् ' देखिये। बनावें, तत्पश्चात् उसमें अन्य ओषधियोंका चूर्ण (३६४१) नाराचरसः (१) मिलाकर खरल करें। (र. चं.; र. र.; र. का. धे.; वृ. नि. र. इसे मिश्री और घीके साथ देनेसे उदावर्त, ___यो. र. । गुल्मा.) अफारा, उदररोग, आध्मान और गुल्म नष्ट तानं सूत: समं गन्धं जेपालं त्रिफला समम् । | होता है । त्रिकटु पेपयेत्तौदैनिष्कं गुल्महरं लिहेत् ॥ मात्रा-१। माषा । (व्यवहारिक मात्रा १-२ गुल्मोदरहरः ख्यातो नाराचोऽयं रसोत्तमः॥ | रत्ती ।) १-बसूतमिति पाठान्तरम् । नोट-इस रसको खानेके बाद थोड़ी थोड़ी देरमें For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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