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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org भारत-भैषज्य रत्नाकरः । [ २३८ ] । चिकने पत्थर से थोड़ा थोड़ा कसीसका चूर्ण डालते हुवे घोटें । जब सीसेकी बराबर कसीस का चूर्ण डाल चुकें और सीसे की भस्म हो जाय तो उसे २ घड़ी तक अभिपर ही रहने दें तत्पश्चात् उसे ठण्डा करके गरम पानीसे सात बार धोकर धूपमें सुखा लें और फिर उसे २ पहर आकके दूधमें घोटकर टिकिया बनायें और उन्हें सुखाकर शरावसम्पुटमें बन्द करके ३० अरण्य उपलों में फूंक दें। जब सम्पुट स्वांग शीतल हो जाय तो उसमेंसे औषधको निकालकर उसमें ५-५ तोले पारे arrest कज्जली मिलाकर सबको २ पहर तक सहदेवीके रसमें घोटकर टिकिया बनावें और उन्हें सुखाकर शरावसम्पुटमें बन्द करके पूर्ण गजपुटमें फूंक दें। उसके पश्चात् सम्पुटके स्वांग शीतल होनेपर उसमें से सीसेकी भस्मको निकालकर उसे १ पहर घृतकुमारीके रसमें और १ प्रहर आकके दूधमें घोटकर, टिकिया बनाकर, उन्हें सुखाकर शराबसम्पुटमें बन्द करके ३० अरण्य उपलों में फूंक दें। तत्पश्चात् १ पुट सहदेवी के रस में और लगा दें। बस रस तैयार है । इसमें से २-२ रती दवा नित्यप्रति ४० दिन तक बाबचीके चूर्णके साथ खिलाएं । दवा खिलाने के पश्चात् रोगीको १ पहर धूपमें बिठलाएं। पथ्यमें गेहूं और तिलका तैल सेवन कराएं। इस प्रकार थोड़े दिन तक औषध सेवन करने से मण्डल कुष्टसे पानी निकलकर उस स्थानका रंग धीरे धीरे स्वाभाविक त्वचाके रंगके समान हो जायगा । इसे गलत्कुष्ट में देवदारु, दारचीनी, और Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ नकारादि बाबचीके चूर्णके साथ; वातरक्त में सोंठ, मिर्च, पीपल और देवदारुके चूर्ण के साथ और मूत्रकृच्छ्र में केवल बाबची के चूर्णके साथ खिलाना चाहिए। इस पर दूध भात सर्वत्र पथ्य है । (३६३९) नागेश्वरविधः ( रस. चिं. 1 स्तब. ११; अनु. त. । को. १ ) पलद्वयं मृतं नार्ग हिङ्गुलं च पलद्वयम् । शिला कर्षमिता ग्राह्मा सर्वतुल्यं हि गन्धकम् || निम्बुनीरेण सम्मर्थ ततो मजपुटे पुटेत् । तदा नागेश्वरोऽयं स्यानागराजसुतोपमे || निशान्ते नागराजं यो सेवयेल्ललने पुमान् । नागवल्लदलेमाहं यथा नीरु प्रकामवान् ॥ भवेन्नारीशतं भुक्त्वा तथाप्यम्बुजलोचेन । तृप्तिं न याति कामस्य नित्यदृद्धिमवाप्नुयात् ॥ सीसेकी भस्म और शुद्ध शिंगरफ (हिङ्गुल ) १०- १० तोले तथा शुद्ध मनसिल १| तोला और गन्धक इन सबकी बराबर लेकर सबको एक दिन नीबूके रसमें घोटकर टिकिया बनाकर, उन्हें सुखाकर शरावसम्पुटमें बन्द करके गजपुटमें फूंक दें; और सम्पुटके स्वांगशीतल होने पर Heart निकालकर सुरक्षित रक्खें । इसे प्रातः काल पानमें रखकर सेवन करने से अनेक स्त्रियोंके साथ रमण करने पर भी कामशक्तिह्रास नहीं होता । ( मात्रा - १ - २ रत्ती ) (३६४०) नागेश्वररसः (भै. र. । गुल्मा. ) शुद्धसूतस्तथागन्धो नागवङ्गौ मनःशिला । For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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