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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - । १२] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [ दकारादि कायः कृतो मधुयुतो विधिना निपीतो । पीतो हन्ति क्षयोद्भवं सततकं चातुर्थिकं भूतजम् रक्त सितश्च सरुजं प्रदरं निहन्ति । | योगोऽयं मुनिभिः पुराणगदिवो जीर्णज्वरे रसौत, चिरायता, बासा, नागरमोथा दुस्तरे ॥ बेलगिरी, लाल चन्दन और आकड़ेके फूलोंके ___कटसरैया, देवदारु, इन्द्रजौ, मजीठ, कालीकाथमें शहद डालकर पीनेसे पीडायुक्त श्वेतप्रदर सर,३ पाठा, शठी, सेठ, खस, चिरायता, गजपीऔर रक्तप्रदर नष्ट होता है। पल, त्रायमाणा, पद्माख, हरतीसंहार, धनिया, (२८७२) दााद्याश्च्योतनम् | मोथा, चीर (सरलकाष्ट), सहजनेकी छाल, सुग(ग. नि. । नेत्ररो.) न्धबाला, बड़ी कटेली, हर्र, छोटी कटेली, पित्तपापड़ा, दाहरिद्रा त्रिफलां समुस्तं | दाभकी जड, कुटकी, अनन्तमूल, गिलोय, पोखरसशर्करं माक्षिकसंप्रयुक्तम् । मूल । सब चीजें समान भाग लेकर अधकुटा आश्च्योतनं मानुषदुग्धमिश्र पित्तास्रवाते तु भिषग्विदध्यात् ॥ करालें। पित्तज, रक्तज और वातज नेत्राभिष्यन्दमें दारु और वातज नेवाभियन्त दाम इसमें से २ तोले काथ (चूर्ण) लेकर आधाहल्दी, हर्र, बहेड़ा, आमला और नागरमोथा के | सेर पानी में पकायें जब आध पाव रहजाय उतारकर काथमें खांड, शहद और स्त्रीका दूध मिलाकर उसकी छानले । बूंदें आंखमें डालनी चाहिये ।। यह काथ धातुगत, विषम, सन्निपातज, रोजा(२८७३) दास्यादि काथ: | ना, तिजारी, कामज, शोकजनित, और छर्दि युक्त (धन्व. । ज्वर.; भै. र. । ज्वर.; यो. चिं. । अ. ४: । तथा अन्य अनेक प्रकारके ज्वरोको नष्ट करता है। यो. त. । त. २०: वृ. यो. त. । त. ५९) । विशेषकर क्षयके ज्वर, सदा बना रहने वाले ज्वर दासी'दारुकलिलोहितलताश्यामाकपाठाशठो। (मयादी बुखार ), चौथिया ( चातुर्थिक ) ज्वर, शुण्ठयोशीरकिरातकुअरकणात्रायन्तिकापमः॥ भूतजन्य ज्वर और कष्ट साध्य जीर्णज्वरमें वजीधान्यकनागराब्दसरलैः शिवम्बुसिंहीशिवा: अत्यन्त गुणकारी है। ध्याघीपर्पटदर्भमूलकटुकानन्तामृतापुष्करैः ॥ (२८७४) दाहप्रशमनमहाकषायः धातुस्यं विषमं त्रिदोषजनितं चैकाहिक (च. सं. । सू. अ. ४) ____ द्वयाहिकम् । लाजाचन्दनकाश्मर्यफलमधुकशर्करानीलोत्पलो कामैः शोकसमुद्भवं च विविधं यं छर्दियुक्तं शीरसारिवागुडूचीहीवेराणीति दशेमानि दाह नृणाम् ॥ ' प्रशमनानि भवन्ति । १ दाादीति पाठभेदः । २ दावीति पाठान्तरम् । ३ 'श्यामाक' यहां पर 'श्यामा के स्थान में लिखा गया प्रतीत होता है; इसी लिये उसका अर्थ कालीसर किया है। For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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