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कषायप्रकरणम् ]
तृतीयो भागः ।
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धानकी खील (लाजा), लालचन्दन, खम्भा- पीपल, सोंठ और हर्रके चूर्णको गुड़में मिलारीके फल, मुलैठी, खांड, नीलोत्पल ( नीलकमल- कर उसमें थोडासा घी डालकर दूधके साथ पिलानीलोफर ), खस, सारिवा, गिलोय और सुगन्ध । नेसे दूध बढ़ता है। बाला । इन दश चीजों के समूहको “दाहप्रशमन |
(२८७७) दुग्धामलकयोगः महाकषाय" कहते हैं । ( यह दसों ओषधियां
(वृ. नि. र. । स्व. भ.) दाहनाशक द्रव्यों में अग्रगण्य हैं ।)
दुग्धे प्रयुक्तामलकी नराणाम् (२८७५) दीपनीयमहाकषायः
नष्टस्वराणां सुखमातनोति । (च. सं. । सू. अ. ४)
यथा मृगाक्षी सुरकिनराणाम् पिप्पलीपिप्पलीमूलचन्यचित्रकाराम्लवेतस .
"कन्दर्पर्दप प्रतिपीडनं च ॥ मरिचाजमोदाभल्लातकास्थिहिानिर्यासा इति |
___ आमलेके चूर्णको दूधके साथ पीनेसे स्वरभङ्ग दशेमानि दीपनीयानि भवन्ति ॥
नष्ट होता है । ( मात्रा ६ माशे-प्रातः, दोपहर, पीपल, पीपलामूल, चव, वीता, सेठ, अम्लबेत, काली मिर्च, अजमोद, भिलावेकी गिरी और
सायम् ।) होंग । इन दश चीजों के समूहको “ दीपनीय | (२८७८) दुरालभादिकल्कः महा कषाय " कहते हैं । ( यह ओषधियां अग्नि
( हा. सं. । स्था. ३ अ. ७) दीपक द्रव्यों में प्रधान हैं । )
दुरालभा पर्पटकं च विधा (२८७६) दुग्धशोधकतथा वर्धक प्रयोगाः | पटोलनिम्बाम्बुदतिन्तडीकम् । __ (हा. सं. । स्था. ३ अ. ५६)
सशर्कर कल्कमिदं प्रयोज्यं पिप्पली पिप्पलीमूल नागरं घनबालकम् । सपित्तवातोद्भवशूलशान्त्यै ॥ इस्तम्बरूणि मनिष्ठां सह क्षीरेण कल्कयेत् ॥ वात पित्तज शूलकी शान्तिके लिए धमासा, पानं क्षीरविशुद्धयर्थ कल्कममातराशिते । । पित्तपापड़ा, सोंठ, पटोलपत्र, नीमकी छाल, नागरमरीचं पिप्पलीमूल क्षीर क्षीरविवृद्धये ॥ मोथा और तिन्तडीक के कल्क (पानीके साथ मागधी नागरं पथ्या गडेन सघृतं पयः।। पत्थर पर पिसी हुई चटनी) के साथ खांड मिलापान जनयते क्षीरं खीणां क्षीरक्षयादपि । कर सेवन कराना चाहिये । ( मात्रा-सब चीजें
पीपल, पीपलामूल, सेठ, नागरमोथा, सुगन्ध- | समान भाग मिली हुई १ तोला और खांड सबके माला. कस्तम्बर और मजीठको दधके साथ पत्थर | बराबर लेनी चाहिए) पर पिट्ठी की तरह पीसकर प्रातःकाल दूध के साथ | (२८७९) दुरालभादिकषायः (१) पिलानेसे प्रसूता का दूध शुद्ध होता है।
(ग. नि. । मूत्रकृ.) काली मिर्च और पीपलामूलके कल्कको दूधके | दुरालभाश्मभित्पथ्याव्याघ्रीमधुकधान्यकैः । साथ पिलाने से प्रसूता के स्तनोंमें दुग्धवृद्धि | कृतः काथो सितापीतो मूत्रकृच्छ्रविषन्धनुत॥ होती है।
दाई शूलं निहन्त्याशु तमः सूर्योदये यथा ॥
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