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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नस्यप्रकरणम् ] तृतीयो भागः। [२२१] - नेपाली ताम्रभस्म ( अथवा अत्यन्त महीन चूर्णको पानीके साथ पीसकर बत्तियां बनावें । चूर्ण) हर्र, बहेड़ा, आमला, शंख, रेणुका, सोंठ, इसे आंख में आंजने से कफज तिमिर रोग मिर्च, और पीपल; सबके समानभाग मिश्रित । नष्ट होता है। इति नकाराधञ्जनप्रकरणम् । अथ नकारादिनस्यप्रकरणम् (३५९२) नवसादरचूर्णयोगः पारदभस्म, ताम्रभस्म, लोहभस्म, चीतेका (पृ. नि. र. । शिरो.) चूर्ण, सुहागेकी खील, शुद्ध खपरिया और सोंठ, | मिर्च, तथा पीपलका महीन चूर्ण बराबर बराबर नस्येन कलिकाचूर्ण नवसागरज रजः। लेकर सबको एकत्र मिलाकर एकदिन आकके पातश्लेष्मभवां पीडां शिरसो हन्ति सर्वथा ॥ दूधमें घोटें। __ कलीचूना और नौसादर समान भाग मिलाकर सूंघनेसे वातकफज शिरशूल नष्ट हो जाता है। __ आकके दूधमें मिलाकर इसकी नस्य देनेसे ( यह तीव्र नस्य है अत एव अधिक न सूंघनी | सन्निपात ज्वर नष्ट होता है। चाहिये । अथवा इन दोनोंको एक शीशीमें भर- नोट—इसे सावधानी पूर्वक रोगीके बलाबलका कर रक्खें जब सूंघना हो तब शीशीमें २-३ बूंद विचार करके यथोचित मात्रानुसार देनी पानी डाल दें और उससे जो वाष्प निकले उसे चाहिये। सूचे। | (३५९४) नागरादिनस्यम् (यह नस्य बिच्छूके विषको भी नष्ट करती है।) (३५९३) नस्यभैरवः ( वं. से.; वृ. नि. र.; वृ. मा. । शिरो.) (र. चं.; र. सा. सं.; र. रा. मुं.; र. का.धे.। | नागरकल्कविमिश्रं क्षीरं नस्येन योजित पंसाम। ___ ज्वर.; रसेन्द्रचिं. । अ. ९) | नानादोषोद्भूतां शिरोरुज हन्ति तीव्रतराम् ।। मृत्सतार्वतीक्षणाभि टणं खरं समम् ।। । सोंठको दूधमें घिसकर नस्य लेनेसे विविध सम्योपमर्कदुग्धेन दिन सम्मर्दयेदृढम् ॥ दोषों से उत्पन्न तीव्रतर शिर पीड़ा भी नष्ट हो अक्षीरस्तं नस्य सविपातहरं परम् ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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