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भारत-भैषज्य रत्नाकरः।
[नफारदि
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इसे आंखमें लगानेसे विषसे मूर्छित हुवे । (३५७५) नयनसाणाअनम् । ममुष्यकी मूर्छा जाती रहती है।
(भा. प्र. ख. २; यो. र. । नेत्र.) (३५७३) नकान्ध्यकेतुः
कणा सलवणोषणा सह रसाञ्जना सामना । (वृ. यो. त. । त. १३०; वै. - । नेत्र.)
सरित्पतिकफः सिता सितपुनर्नवा सम्भवा ।
रजन्यरुणचन्दनं मधु च तुत्यपथ्या शिला। हरेणुकां सैन्धवसम्पयुक्तां
अरिष्टदलशावरस्फटिकशनाभीन्दवः॥ स्रोतोजयुक्तामुपकुल्यया च । | इमानि तु विचूर्णयेन्निबिडवाससा शोधयेत् । पिष्ट्वाजमूत्रेण कृता च वत्ति
| तथायसि विमर्दयेत्समधुताम्रखण्डेन तत् ॥ नेतान्ध्यविध्वंसकरी नराणाम् ॥ | इदं मुनिभिरीरितं नयनशाणनामाअनम् । रेणुका, सेंधानमक, सौवीरान और दन्तीमूल करोति तिमिरक्षयं पटलपुष्पनाशं बलात् ॥ के समान भाग मिश्रित चूर्णको बकरेके मूत्रमें पीपल, सेंधानमक, काली मिर्च, रसाञ्जन, घोटकर बत्तियां बना।
काला सुरमा, समुद्रफेन, मिश्री, सफेद पुनर्नवामूल, इन्हें आंखमें लगानेसे नक्तान्ध्य (रतौंधा )
हल्दी, लाल चन्दन, मुलैठी, तुत्थ (नीला थोथा),
| हर्र, मनसिल, नीमके पत्ते, लोध, फटकी, शंखनाभि, नष्ट होता है।
और कपूरके अत्यन्त महीन, गाढ़े कपड़से छने हुवे (३५७४) नक्तान्ध्यहरीवत्तिः समान भाग मिश्रितं चूर्णको लोहपात्रमें तांबेकी ( र. र. स. । उ. अ. २३)
मूसलीसे शहदके साथ घोटें। ताम्रायलवणशक्षैस्तुल्या
यह तिमिर, पटल और पुष्पको नष्ट करता है। मगधोद्भवाऽय वै धात्री।
(३५७६) नयनसुखावतिः जलपिष्टा गुलिकेयं
(भै. स.; . मा.; धन्व. । नेत्र.) __सायं समयान्ध्यमपहरति ॥ एकगुणा मागधिका द्विगुणा शुद्ध नैपाली ताम्रका चूर्ण, सेंधानमक और |
च हरीतकी सलिलपिष्टा। संखका चूर्ण १-१ भाग तथा पीपल और आम
वत्तिरियं नयनमुखालेका चूर्ण ३-३ भाग लेकर सबको पानीके साथ
तिमिरामैपटलकाचाश्रुहरी॥ पीसकर बत्तियां बना लीजिये ।
___ एक भाग पीपल और २ भाग हरके महीन
| चूर्णको पानीके साथ पीसकर बत्तियां बना लें। इन्हें आंखमें आंजनेसे मतान्ध्य (स्तीधा) |
१. भा. प्र. यह योग ‘नयनशोणाचन' नामसे नष्ट होता है।
| लिखा है।
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