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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धूम्रप्रकरणम् ] तृतीयो भागः। [२५] - (३५७०) निर्गुण्डयादिधूपः (३) पामापीनसकासनाशनकरो धूपो प्रहोच्छेदनः ।। ( हा. सं. । स्था. ३ अ. ११) ___संभालके पत्ते, नीमके मत्ते, हरताल, सरसों, देवदार और खांडके समभाग मिश्रित चूर्णको घी निर्गुण्डीदलनिम्बपत्रहरितालं सार्षपं चूर्णकम् । और वाहद में मिलाकर धूप देनेसे भगन्दर, अर्श, देवाहं घृतशर्करामधुयुतं धूपं भगन्दारके ॥ | पीडायुक्त दुष्ट और विषम व्रण, विसर्प, पामा, दुर्नामे सरजे व्रणे च विषमे दुष्टे विसर्पेषु च । पीनस, खांसी और ग्रहदोष नष्ट होते हैं । इति नकारादिधूपप्रकरणम् । अथ नकारादिघूम्रप्रकरणम् (३५७१) नेपालिकादिधूम्रयोगा: ___ मनसिल, गायका सींग, कूठ, राल, और कुश (ग. नि. । हिक्का.) | में से किसी एकके चूर्णको घीमें मिलाकर उसका नेपाल्या गोविषाणस्य कुष्ठात्सर्जरसस्य घ।। धूम्रपान करनेसे हिक्का शान्त हो जाती है। धूमं कुशस्य वा साज्यं पिवेद्धिकोपशान्तये ॥ । इति नकारादिधूम्रप्रकरणम् । अथ नकाराधजनप्रकरणम् (३५७२) नक्तमालाद्यञ्जनम् ___ करा के फलेकी गिरी, सेठ, मिर्च, पीपल, (वृ. नि. र.; वं. से.; ग. नि.; . मा. | विषा.) बेलकी जड़की छाल, हल्दी, दारुहल्दी और नक्तमालफलं व्योष विल्वमूल निशाद्वयम् ।। तुलसीके फूल ( वा पत्र ) समान भाग लेकर पूर्ण सौरसं पुष्पामाजं च मूत्रं बोधनंमधनम् ॥ करके सबको बकरीके मूत्रमें घोटकर अत्यन्त महीन १ पत्रमिति पाठान्तरम् । अञ्जन बनावें। For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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