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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अञ्जनप्रकरणम् ] तृतीयो भागः। [२१७] यह " नयन सुखावर्तिः ” तिमिर, अर्म, | (३५७८) नयनामृताजनम् (१) काच, अश्रुश्राव और पटलको नष्ट करती है। (वृ. नि. र.; वं. से; यो. र.; वै. रह.; र. .) नेत्र.; भा. प्र. ख. १ । नेत्र प्रसादने; वृ. यो. (नोट-इस योगमें हर्र की गुठलीके भीतरकी । त.। त. १३१; यो. त. । त. ७१; यो. मजा डालनी चाहिये । ) चि. । अ. ३; वा. भ. । उ. अ. १७; (३५७७) नयनामृतवटी र. मं. ! अ. ८; र. र. स. । अ. २३) (वै. र. । नेत्र.) रसेन्द्रभुजगौ तुल्यौ तयोर्द्विगुणमञ्जनम् । शुण्ठीहरीतकीवन्यकुलत्यं खपरं तथा।। सूततुर्याशकर्पूरमअनं नयनामृतम् ॥ तिमिरं पटलं काचं शुक्रमार्जुनानि च । स्फटिकं श्वेतखदिरं पृथङ्माजूफलं समम् ॥ | क्रमात्पथ्याशिनो हन्ति तथान्यानपि दृग्गदान् ॥ कर मृगनाभिश्च मौक्तिकं च तदर्द्धकम् । प्रत्येकं निम्बुकद्रावैः खल्वे मध दिनत्रयम् ॥ पारा और शुद्ध सीसा १-१ भाग, शुद्ध सुरमा पश्चात्तु वटिकां कुर्याजलेन तिमिरं हरेत् । ४ भाग, और कपूर पारेसे चौथाई लेकर सबको स्तन्येन पुष्पपटल मधुना कानिकान्मलम् ॥ घोटकर अञ्जन बनावें । नेत्रस्रावं रसोनेन नत्तान्ध्य भृङ्गयोगतः।। इसके लगाने और पथ्य पालन करनेसे तिमिर, गोमूत्राचिपिटं मांसद्धि रम्भाजलेन तु ॥ | पटल, काच, शुक्र, अर्म, अर्जुन और अन्य नेत्ररोग भी नष्ट होते हैं। सोट, हर्र, केवटीमोथा, कुलथ, शुद्ध खप (प्रथम सीसेको पिघलाकर धार बांधकर धीरे रिया, स्फटिकमणि (अथवा फटकी ), सफेद | धीरे पारदमें छोड़ें और साथ ही साथ घुटवाते कत्था, और माजू फलका चूर्ण २-२ भाग; कपूर, | जायं जब दोनों मिलजाय तो उसमें अन्य चीजें कस्तूरी और सच्चे मोती १-१ भाग लेकर सबको | | मिलाकर घोटें।) ३ दिन तक नीबू के रसमें घोटकर गोलियां बनावें।। (३५७९) नयनामृताञ्जनम् (२) इन्हें पानी के साथ घिसकर आंखमें लगाने से (यो. चिं. । अ. ३) तिमिर, स्त्रीके दूधके साथ लगाने से पुष्प (फूला), शङ्खनाभिकणातुत्थं बोलखर्परसंयुतम् । निम्बूकरसतोयेन हयानं नयनामृतम् ॥ शहदसे पटल, काजीसे मल, रसौन ( ल्हसन ) के शङ्खकी नाभि, पीपल, शुद्ध नीला थोथा, बोल, रसके साथ लगानेसे नेत्रस्राय, भंगरेके रसके साथ | और शुद्ध खपरियाका चूर्ण समान भाग लेकर सबको लगानेसे रतौंधा, गोमूत्रसे चिपिट और केलेके रसके । १ दिन नीबूके रसमें घोटें । साथ घिसकर लगाने से मांसवृद्धि नष्ट होती है। इसका नाम ' नयनामृताञ्जन' है। For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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