SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 21
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org [१०] (२८६०) दाडिमादिकल्क: ( हा. सं. । अ० ३ स्था० ३ ) दाडिमं च कपित्थं च पथ्या जम्ब्वाम्रपल्लवान पिष्ट्वा देया मस्तुयुक्ता रक्तातीसारवारणाः ॥ अनार दाना, कैथका गूदा,हर्र, जामनके पत्ते और आमके पत्ते । सबको पीसकर मस्तुके साथ पिलानेसे रक्तातिसार नष्ट होता है । (२८६१) दाडिमादिकाथः ( ग. नि.; वं. से. । अति. ) कषायो मधुना पीतस्त्वचो दाडिमवत्सकात् । सद्यो जयेदतीसारं रक्तजं दुर्निवारकम् ॥ अनार और कुड़ेकी छालके काथमें शहद डालकर पीने से कष्टसाध्य रक्तातिसार भी शीघ्र ही नष्ट हो जाता है । (२८६२) दाडिमाम्बुयोगः - भैषज्य रत्नाकरः । भारत ( वृ. मा. । मूत्राघात. ) दाडिमाम्बुयुतं मुख्य मेलाबीजं सनागरम । पीत्वा सुरां सलवणां मूत्राघाताद्विमुच्यते ॥ अनार के रस में छोटी (गुजराती) इलायची के बीज और सेठका चूर्ण मिलाकर पीनेसे अथवा मदिरा में नमक मिलाकर पीनेसे मूत्राघात नष्ट होता है । (२८६३) दार्वादिकल्कः (वं. से. । शोथ. ) I दारुगुग्गुलुशुण्डीनां कल्को मूत्रेण शोथजित् । वर्षाराभ्यां कल्को वा सर्वशोथजित् ॥ देवदार, गूगल और सेंठका कल्क या पुनर्नवा ( बिसखपरा - साठी) और सोंठका कल्क गोमूत्रके [ बकारादि साथ सेवन करने से सर्व प्रकारके शोथ नष्ट होते हैं । (२८६४) दार्वादिकाथ: ( १ ) ( हा. सं. । स्था. ३ अ. ७) दारु नागरकं वासा हिसौबलान्वितः । shirt वातकफे शूले आमे जीर्णे विबन्धके ॥ देवदार, सेठ और बासेके काथमें हींग तथा काला नमक (सञ्चल) मिलाकर पीनेसे वातकफज शूल, आमाजीर्ण और मलबन्ध नष्ट होता है । ( २८६५) दार्वादिकाथः ( वृ. नि. र. । ज्वर. ) दारूपर्पटभायैन्दव वाघान्यक कट्फलैः । सामया विश्वतिकैः काथो हिङ्गुमधूत्कटः ॥ कफवातज्वरे पीतो हिक्काशोषगलग्रहान् । श्वासकासमेrise हन्यात्तमिवाशनिः ॥ - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देवदारु, पित्तपापड़ा, भरंगी, नागरमोथा, बच, धनिया, कायफल, हर्र, सोंठ और करञ्जकी छालके काथमें हींग और शहद मिलाकर पिलानेसे कफवातज ज्वर, हिचकी, शोष, गलग्रह, श्वास, खांसी और प्रमेहका नाश होता है । (२८६६) दार्वीसेकः (ग. नि. । नेत्ररोग ) षोडशभिः सलिलपलैः पलं तथैकं कटङ्कर्याः सिद्धम | सेकोऽष्टभागशिष्टः क्षौद्रयुतः सर्वदोषहरः ॥ ५ तोले दारुहलदीको ८० तोले पानी में पकावें जब १० तोले पानी शेष रहे तो छानलें । इसमें थोड़ा शहद डालकर बारीक धारसे आंख के १ मस्तु - दही में दो गुना पानी मिलाकर बनाया हुवा तक । For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy