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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कपायप्रकरणम् ] तृतीयो भागः। [९] - काकड़ासिंगी, मोथा, लाल चन्दन, सांठ, पटोलपत्र, साथ पीसकर पीने और गीली चादरसे शरीरको पाठा, चिरायता, धमासा, खस, धनिया, . पद्माक, | ढकनेसे तृषा शान्त हो जाती है। सुगन्धबाला, कटेली, पोखरमूल और नीमकी छाल। । (२८५७) दाडिमरस: इन अठारह ओषधियोंके योगको दशाष्टाङ्ग काथ (वृ. नि. र. । अरुचि.) कहते हैं। इसके सेवनसे जीर्णज्वर, अरुचि, श्वास, विडाचूर्णसंयुक्तो रसो दाडिमसम्भवः । खांसी, और सूजनका नाश होता है । असाध्यमपि संहन्यादरुचिं वक्रधारितः ।। (२८५४) दाडिमत्वकाथः ____ अनार (दाडिम) के रसमें बायबिडङ्गका चूर्ण (यो. र. । कृ. चि.) | मिलाकर मुंहमें रखने से असाध्य अरुचि भी नष्ट दाडिमत्वककृतः कायस्तिलतैलेन संयुतः।। हो जाती है। त्रिदिनात्पातयत्येव कोष्ठतः कृमिजालकम् ॥ दाडिम ( अनार ) के वृक्षकी छालके काथमें | (२८५८) दाडिमरसादिकवलग्रहः तिलतैल मिलाकर ३ दिनतक पिलानेसे उदरके (ग. नि. । अरो. ) कृमि अवश्य निकल जाते हैं। दाडिमोत्यस्तु निर्यासस्त्वजाजीशर्करान्वितः। (२८५५) दाडिमपुटपाक: मधुतैलयुतो हन्यादरुचिं कवलीकृतः॥ (भै. र.; यो. र. । अति.) अनार (दाडिम) के स्वरस में जीरा, खांड पुटपाकेन विपचेत्सुपक्वं दाडिमीफलम् ।। शहद और तिलका तेल मिलाकर उसके कवल २ सदसो मधुसंयुक्तः सर्वातीसारनाशनः ॥ धारण करने से अरुचि नष्ट होती है। पके अनार (दाडिम) को पुटपाकी विधिसे (२८५९) दाडिमादिकल्कः (१) पकाकर उसका रस निकाल लीजिए । इसमें शहद (ग. नि. । अति.) मिलाकर सेवन करनेसे समस्त प्रकारके अतिसार | दाडिमीधातकीमूलकण्टकारीकुटजत्वचः । नष्ट होते हैं। रोधं तण्डुलतोयेन प्रपिष्टमतिसारजित् ॥ (२८५६) दाडिमबीजादिप्रयोगः अनारकी छाल, धायकी जड़, कटेली, कुड़े की (वं. से. । तृषा.) छाल और लोध; समान भाग लेकर चावलोंके पानीमें अम्लं दाडिमबी पीतं धात्रीफलश्च धान्याम्लैः पीसकर पिलानेसे अतिसार नष्ट होता है । आईपटास्तरणकृतप्रावृतगात्रस्तषां जयति ॥ . (चावलेका पानी-प्रथम भाग पृष्ठ ३५३ पर __ खट्टे अनारके बीज और आमलेको काजीके | तण्डुलोदक बनानेकी विधि देखिए । ) १ पुट-पाक-विधि प्रथम भागके पृष्ट ३५२ पर देखिये। २ अनारकारस, शहद और तेल बराबर बराबर मिले हुवे ५ तोले । जीरा और खांड ६-६ माशे मिलाकर मुखमें भरें और थोड़ी देर मुखको चलाते रहें जब आंख नाकसे पानी निकलने लगे तो कुल्ला करदें और फिर दुबारा नया रस मुंहमें भरें। इसी प्रकार बार बार करें। For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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