SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 207
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org [२१२] (३५५५) नीलोत्पलायो लेपः ( रा. मा. । शिरो. ) नीलोत्पलाक्षफलमज्जतिलाजगन्धाः । साङ्गकुसुमैः समपूगवल्कैः ॥ 9 सम्पिष्य यः प्रकुरुते बहुशः प्रलेपम् । खालित्यमस्य न पदं विदधाति मूर्ध्नि ॥ नीलकमल, बहेड़े की गुठलीकी मज्जा (गिरी), तिल, अजमोद, फूलप्रियङ्गु और सुपारीके छिलके समान भाग लेकर पानीके साथ पीसकर बार बार लेप करनेसे खालित्य ( गञ्ज ) नष्ट हो जाता है होने वाले विसर्प के लिये है । ) (३५५८) न्यग्रोधादिलेप: (२) और पुनः नहीं होता । (३५५६) नील्यादियोग: ( र. र. रसा. ख. । उपदे. ५ ) नीलीपत्राणि कासीसं भृङ्गराजरसं दधि । लोहचूर्ण समं पिष्ट्वा तल्लेपं केशरञ्जनम् ॥ भारत-भैषज्य रत्नाकरः । नीलके पत्ते, कसीस, भंगरेका रस, दही, और लोहचूर्ण समान भाग लेकर पीसकर लेप करनेसे सफेद बाल काले हो जाते हैं। ( यदि लेप गाढ़ा हो तो उसमें भंगरेका रस अधिक मिला लेना चाहिये । बालोंपर लेप करके ऊपरसे अरण्ड या केलेका पत्ता बांध देना चाहिये और दूसरे दिन लेप धोकर तैल लगा देना चाहिये ! ) [ नकारादि लक्ष्णपिष्ठैर्यथालाभ शिशोः कार्ये प्रलेपनम् । सदाह रागविस्फोट: वेदनाव्रणशान्तये || (३५५७) न्यग्रोधादिलेप: (१) (वं. से. 1 बाल. ) न्यग्रोधोदुम्ब रोश्वत्थलक्ष वेतसजम्बुजैः । त्वर्यष्टयाहममिष्ठाचन्दनोशीर पद्मकैः 5: 11 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बड़, गूलर, अश्वत्थ ( पीपल वृक्ष ), पिलखन, बेत, और जामन; इनकी छाल तथा मुलैठी, मजीठ, लाल चन्दन, खस और पद्माक । इनमें से जितनी चीजें मिल सकें वह सब समान भाग लेकर महीन पीसकर लेप करनेसे बालकके दाह, सुर्खी, विस्फोटक और वेदना युक्त व्रण नष्ट होते हैं । (यह योग बालकोंके शिर तथा बस्ति प्रदेश में (वृ. नि. र.; यो. र.; वं. से. । विसर्प. ) न्यग्रोधपादो गुआ' च कदलीगर्भ एव च । तैर्ग्रन्थिविसर्प लेप धौताज्यसंयुतः ।। बड़की जड़ की छाल ( या जटा ), चींटली ( मतान्तर में पटेर ) और केलेकी मूसलीको महीन पीस कर सौ बार धुले हुवे घृतमें मिलाकर लगाने से प्रन्थिविसर्प नष्ट होता है । (३५५९) न्यग्रोधादिलेप: (३) (बृ. नि. र.; वं. से. । मसू. ) न्यग्रोधप्लक्षमञ्जिष्ठाशिरीषोदुम्बरत्वचाम् । ससर्पिष्कं मसूर्य्यान्तु वातजायां प्रलेपनम् ॥ बड़की छाल, पिलस्बन की छाल, मनीठ, सिरसकी छाल, और गूलरकी छालके समभाग मिश्रित चूर्णको घी में मिलाकर लगाने से वातज सूरिका नष्ट होती है । १---' गुन्द्रा' इति पाठान्तरम् । For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy