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सेपमकरणम् ]
हतीयो भागः।
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(३५४९) निशादिलेपः (३) | समान भाग लेकर महीन चूर्ण करके उसे तक्रमें __(पृ. नि. र.; यो. र.; वं. से. । अर्श.) । पीसकर सरसेकेि तैलमें मिलाकर मालिश करनेसे निशाकोशानकीचूर्ण स्नुपयः सैन्धवान्वितम् ।
पामा इत्यादि नष्ट हो जाती है। गोमूत्रेण समायुक्तो लेपो दुर्नामनाशनः ॥ (३५५२) नीलाजकेशरादिलेपः।
हल्दी, कडवी तोरी और सेंधा नमकके समान / (रा. मा. । शिरो. ) भाग मिश्रित पूर्णको थोहर (सेंड-सेहुंड) के | नीलाब्जकेशरतिलामलकैः सुपिष्टैदूधमें घोटकर गोमूत्रमें मिलाकर लेप करनेसे भर्श | यष्टयान्वितैर्बजति दारुणकः प्रणाशम् ॥ (बवासीर ) नष्ट होती है।
__नीलकमलकी केसर, तिल, आमला और मुलैठी (३५५०) निशादिलेपः (४)
के समान भाग मिश्रित चूर्णको पानीमें पीसकर (वं. से., पृ. मा. । मसूरि.) | लेप करनेसे दारुण नामक शिरो रोग नष्ट होता है। निशाद्वयोशीरशिरीषमुस्तकैः
(३५५३) नीलीलेपः सलोध्रभद्राश्रियनागकेशरैः।
(वं. से. । क्षुद्ररो.) सस्वेदविस्फोटविसर्पकुष्ठ
नीलीपटोलयोर्मूलं जलपिष्टं घृतेन तम् । दोर्गन्ध्यरोमान्तिहरः प्रदेहः ।।
| निहन्ति लेपनान्नूनं जालगर्दभजो रुजाम् ॥ हल्दी, दारुहल्दी, खस, सिरसकी छाल, भागरमोथा, लोध, सफेद चन्दन और नागकेसर
नील और पटोलकी जड़को पानीके साथ के समभाग मिश्रित चूर्णको पानीके साथ पीसकर | महीन पीसकर धीमें मिलाकर लेप करनेसे जाललेप करनेसे शरीरकी दुर्गन्ध, पसीना, विस्फोटक,
| गर्दभ नामक क्षुद्ररोग अवश्य नष्ट हो जाता है । विसर्प, कुष्ठ और रोमान्तिका नष्ट होती है। । (३५५४) नीलोत्पलादिलेपः (३५५१) निशादिलेपः (५)
(वृ. नि. र.; यो. र. । उपदं.) (ई. मा.; वं. से. । कुष्ठा.; पृ. यो. त. । त. १२०) नीलोत्पलानि कुमुदं पदसौगन्धिकानि च । निशामुधारग्वधकामाची
उपदंशे चूर्णयित्वा प्रलेपोऽयं प्रशस्यते ॥ पत्रैः सदावर्वीप्रघुनाटबीजैः।
नीलकमल, कुमुद, पद्म ( सफेद कमल ) तक्रेणपिष्टैः कटुतैलमित्रैः
| और सौगन्धिक (लाल कमल ) के चूर्णको पानीमें पामादिद्वर्तनमेतदिष्टम् ।। पीस कर लेप करनेसे उपदंश नष्ट होता है । हल्दी, थोहर (सेंड-सेहुंड ) अमलतास और यह प्रयोग ब. से. और भा. प्र. में क्षुद्र रोगोंमें मकोयके पत्ते; दारु हल्दी, तथा पमाड़के बीज । लिखा है; उसमें तिल नहीं लिखे, शेष प्रयोग समान है।
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