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पाकरणम् ]
तृतीयो भागः।
[२१३]
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(३५६०) न्यग्रोधादिलेपः (४) । (३५६१) न्यग्रोधादिलेपः (५) ( वृ. नि. र. । व्रण.; वं. से.; यो. र. । विसर्प.)
( यो. र.; वृ. नि: र.; ग. नि.; . मा. । व्रणशो.)
न्यग्रोधोदुम्बराश्वत्यप्लक्षवेतसकवल्कलै । न्यग्रोधोदुम्बरोश्वत्थप्लक्षवेतसशेलुभिः ।
ससर्पिष्कैः प्रलेपः स्याच्छोफनिरिणः परः॥ चन्दनद्वयमनिष्ठायष्टीमरणगैरिकैः ॥
बड़, गूलर, पीपलवृक्ष, पिलखन और त शतधौतघृतोन्मित्रैलेंपो रक्तप्रसादनः।।
की छालके महीन चूर्णको धीमें मिलाकर लेप करनेदाहपाकरुजासावशोफनिर्वापणं परः ॥
| से ब्रणकी सूजन नष्ट होती है। आगन्तुजे रक्तजे च एष लेपोतिपूजितः ॥
(३५६२) न्यग्रोधाद्युदर्तनम् बड़की छाल, गूलरकी छाल, पीपलकी छाल,
(वै. जी. । वि. ४) पिलखनकी छाल, बेतकी छाल, लिहसौड़ेकी छाल, | न्यग्रोधाङ्करकुष्ठरोधविकसाश्यामामसूरारुण । सफेद चन्दन, लाल चन्दन, मजीठ, मुलैठी, सूरण श्रीखाः पयसान्वितैर्विरचित्तं व्यङ्गनमुद्वर्त्तनम् ।। ( जिमिकन्द ) और गेरुके समान भाग मिश्रित बड़के अंकुर (कांपल), कूठ, लोध, मजीठ, चूर्णको सौ बार धुले हुवे धीमें मिलाकर लेप करने- फूलप्रियङ्ग, मसूर, सफेद चन्दन और लाल चन्दनसे दाह, पाक, पीड़ा, स्राव और शोथ युक्त आग- के समान भाग मिश्रित चूर्णको दूधमें मिलाकर न्तुक तथा रक्तज विसर्प नष्ट होता है। उबटन करनेसे मुखकी झाई नष्ट हो जाती हैं ।
इति नकारादिलेपप्रकरणम्।
Cameer अथ नकारादिधूपप्रकरणम्
(३५६३) निम्बकाष्ठधूपः | (३५६४) निम्बादिधूपः (१) ( यो. त. । त. ७५)
( वृ. नि. र. । ज्वरा.) धूपिते योनिरन्ध्रे च निम्बकाष्ठेन युक्तितः। निम्बपत्रं वचा कुष्ठं पथ्या सिद्धार्थकं घृतम् । ऋत्वन्ते रमते या स्त्री न सा गर्भमवाप्नुयात्।। विषमज्वरनाशाय गुग्गुलुश्चेति धूपनम् ॥ ____ यदि ऋतुकालके अन्तमें योनिको नीमकी नीमके पत्ते, बच, कूठ, हर्ष, सफेद सरसों, लकड़ी की धूनी देकर स्त्री पुरुषसमागम करें तो और गूगलके चूर्णको घीमें मिलाकर उसकी धूप गर्म नहीं रहता ।
देनेसे विषम ज्वर नष्ट होता है ।
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