________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
तैलपकरणम् ]
तृतीयो भागः।
[२०३]
-
-
और काथसे सिद्ध तैल लगानेसे भगन्दर नष्ट हो | दत्त्वा चतुर्भागरसेन तेन जाता है।
तैलं पचेदर्द्धपलपयुक्तैः॥ (सब चीज़ोंका समान भाग मिश्रित कल्क कल्कैरनन्ताखदिरेरिमेद१३ तो. ४ माशे, कोथ ८ सेर, तैल २ सेर । ) जम्बाम्रयष्टीमधुकोत्पलानाम् । (३५१७) निशादितैलम् (२)
तत्तैलमाश्वेव धृतं मुखेन (वृ. मा. । बाल.)
__ स्थैर्य द्विजानां बलतां विदध्यात् ।। नाभिपाके निशालोध्रप्रियङ्गमधुकैः शृतम् ।।
___ नीले फूलकी कटसरैया ६। सेर लेकर अध.
- कुटा करके ३२ सेर पानीमें पकावें, जब ८ सेर तलमभ्यञ्जन शस्तमाभवाऽप्यवाणतम् ।। पानी रह जाय तो छानकर उसमें २ सेर तिलका
बालककी नाभि पक जाय तो हल्दी, लोध, तैल और २॥-२॥ तोले अनन्तमूल, खैर सार, फूल प्रियंगु और मुलैठी के कल्क और काथसे इरिमेद (दुर्गन्धित खैर), जामन और आमकी सिद्ध तैल या इन्हीं चीजेांका चूर्ण लगाना चाहिये। छाल, मुलैठी, और नीलकमल का कल्क मिलाकर
(तैल पाकके लिये-सब चीजेका समान | पकावें। भाग मिश्रित कल्क १३ तो. ४ माशे, काथ ८ सेर, तैल २ सेर ।)
__इस तेलको मुखमें धारण करनेसे (दांतों पर
लगाने या इसके गण्डूष धारण करनेसे ) हिलते (३५१८) निशाचं तैलम्
हुवे दांत स्थिर हो जाते हैं। (भै. र.; धन्व. । कर्ण.)
(३५२०) नीलीतैलम् निशागन्धपले पकं कटुतैलं पलाष्टकम् ।
(सु. सं. । चि. अ. २५; र. र. रसा. खं. । धुस्तुरपत्रजरसे कर्णनाडीजिदुत्तमम् ॥
उपदे. ५; ग. नि. । तैला.) हल्दी और गन्धकका कल्क २॥ २॥ तोले,
नीलीदलं भृङ्गरजोऽर्जुनत्वक् सरसोंका तैल १ सेर तथा धतूरेका रस ४ सेर
पिण्डीतकं कृष्णमयोरजश्च । लेकर सबको एकत्र मिलाकर रस जलने तक पकावें। ___ इसे कानमें डालनेसे कर्णनाड़ी ( नासूर )
बीजोद्भवं साहचरश्च पुष्पं नष्ट होता है।
पथ्याक्षधात्रीसहितं विचूर्ण्य ।।
एकीकृतं सर्वमिदं प्रमाय (३५१९) नीलसहचराद्य तेलम्
पडून तुल्यं नलिनीभवेन । ( ग. नि. । तैला.) संयोज्य पक्षं कलशे निधाय तुलां धृतां नीलसहाचरस्य
लोहे घटे समनि सपिधाने ॥ संक्षुध द्रोणे अपयेजलस्य। अनेन तैलं विपचेद्विमिश्र
For Private And Personal Use Only