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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [२०२] भारत-भैषज्य रत्नाकरः। [नकारादि (३५१३) निर्गुण्डोतैलम् (५) तोले वछनाग (मीठा तेलिया ) का चूर्ण मिलाकर ( र. र.; च. द.; धन्व.; भै. र.; ग. नि.; वृ. मा.। पानी जलने तक पकावें । नाडीव्रणा.; यो. त. । त. ६०) इसे कानमें डालनेसे बधिरता, कर्णनाद, कृमि समूलपत्रां निर्गुण्डी पीडयित्वा रसेन तु। और कर्णपीड़ा तथा कर्णस्राव नष्ट होता है । तेन सिद्धं सम तैलं नाडीदुष्टत्रणापहम्॥ नोट-यदि सब चीज़ोका काथ ही डालना हो हितं पामापचीनाश्च पानाभ्यञ्जननावनैः। तो वछनाग ६ तोले ८ माशे डालना चाहिये। विविधेषु च स्फोटेषु तयादुष्टत्रणेषु च ॥ (३५१५) निर्गुण्डयादितैलम् (२) मूल और पत्र सहित संभालको कूटकर ४ (रा. मा. । शिरो.) सेर रस निकालें, और इसमें १ सेर तिल का तैलनिगडीला लियागाति दलित मिलाकर तैलमात्र शेष रहने तक पकावें । शिरसोरुजः समग्रा यदि वाऽपामार्गबीजसंसिइसको पीने तथा इसकी नस्य लेने और द्धम् ।। मालिश करनेसे दुष्ट नाड़ी व्रण ( नासूर ), पामा, | ___ संभालु, कलिहारी और आकके कल्क और अपची (गण्डमाला भेद ) और विस्फोटक नष्ट काथ से पका हुवा तैल मलनेसे या चिरचिटेके होते हैं। बीजेांके कल्कसे सिद्ध तैलकी मालिश करनेसे (३५१४) निर्गुण्डयादितैलम् (१) समस्त प्रकारके शिरशूल नष्ट होते हैं । ( वृ. नि. र.; यो. र. । कर्ण.) ( कल्क १३ तोले ४ माशे । तिलका तैल निर्गुण्डिजातिरविभृङ्गरसोनरम्भा २ सेर । काथ ८ सेर । एकत्र मिलाकर पकावें । ___ कार्पासशिग्रुमुरसाईककारवेल्यः। यदि अपामार्ग के बीजोंसे तैल पाक करना हो तो एषां रसे तिलभवं सविषं सुकर्ण बीजांका कल्क २० तो. पानी ८ सेर और तेल बाधिर्यनादकृमिवेदनपूययुक्ते ॥ २ सेर लेना चाहिये ।) संभालु, चमेली, अर्क, भंगरा, ल्हसन, केला, (३५१६) निशादितैलम् (१) कपास, सहजना, तुलसी, अदरक और करेले में | से जिनका स्वरस मिल सके उनका स्वरस और । | (भै. र.; च. द.; वं. से.; ग. नि.; धन्च. । शेषका काथ समान भाग मिलाकर ४ सेर लें । भगन्दर.) अथवा सब चीजें समान भाग मिश्रित २ सेर । निशाकक्षीरसिन्थ्यमिपुराश्वहनवत्सकैः। लेकर १६ सेर पानीमें पकावे और ४ सेर पानी सिद्धमभ्यञ्जने तैलं भगन्दरविनाशनम् ।। शेष रहनेपर छान लें । तत्पश्चात् इस काथ या | हल्दी, आकका दूध, सेंधानमक, चीता, उपरोक्त स्वरसों में १ सेर तिलका तैल और १० । गूगल, कनेरकी जड़ और कुड़ेकी छाल के कल्क For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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