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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तैलप्रकरणम् ] तृतीयो भागः। [२०१] (३५०९) निर्गुण्डीतलम् (१) कल्कद्रव्य--बच, कूठ, धतूरेके बीज, (वै. म. र. । प. ३) | मालकंगनी और कायफल आधा आधा पल (२॥निर्गुण्डीस्वरसे शृतं तिलभवं भृङ्गादिचूर्णान्विते । २॥ तोले ) तथा वछनाग इन सबके बराबर । पात्रे निःशृतमन्वहं दिनमुखे तन्मात्रया यः पिबेत्।। यह तैल वातव्याधियों को नष्ट करता है। कासश्वासमशेषमनितनुतां शीघ्रं जयेन्मासतो।। यक्ष्माणश्च समस्तरोगनिलयं रामो यथा रावणम्॥ (२० । (३५११) निर्गुण्डोतलम् (३) निर्गुण्डी ( संभाल ) का स्वरस ८ सेर, (र. र.; भै. र.; वं. से. । कर्ण.) तिलका तेल २ सेर और भंगरेका कल्क १० तो. | निर्गुण्डीस्वरसैस्तैलं सिन्धुधमरजोगुडः । लेकर सबको एकत्र मिलाकर पकावें । जब पानी | पूरणात्पूतिकर्णस्य शमनो मधुसंयुतः ॥ जल जाय तो तैलको छान लें। ____ संभालुका स्वरस ४ सेर, सेंधानमक, घरका इसे प्रातःकाल यथोचित मात्रानुसार सेवन | धुवां और गुड़ समान भाग मिश्रित ५ तोले तथा करनेसे खांसी, श्वास, अग्निमांद्य, और यक्ष्मादि तिलका तैल १ सेर लेकर सबको एकत्र मिलाकर रोग एक मासमें ही नष्ट हो जाते हैं। पकावें । जब पानी जल जाय तो तैलको छान लें। ( मात्रा-६ माशेसे १ तोला तक । अनुपान-उष्ण जल ।) ___ इसमें शहद मिलाकर कानमें भरनेसे पूति(३५१०) निर्गुण्डीतैलम् (२) कर्ण रोग नष्ट होता है। (वैद्यामृत । अलं. २) (३५१२) निर्गुण्डीतैलम् (४) निर्गुण्डीकारसात्पस्थं पस्थं मार्कवजादसात् । । (वृ. यो. त. । त. १०८; वृ. नि. र.; भै. र.; रसादत्तूरजात्पस्थं गोमूत्रं प्रस्थसम्मितम् ।। | वं. से.; यो. र.; च. द.; . मा. । गण्डमा.; वचा कुष्ठं हेमबीजं तेजाहा कटफलं तथा । ग. नि. । ग्रन्थ्य.) पला शानि सर्वैस्तु वत्सनागः समो मतः ।।। तैलपस्थं पचेद्युक्त्या वातरोगेषु शस्यते।। • " निर्गुण्डीस्वरसेनाथ लागलीमूलकल्कितम् । हेमन्ते हरिणाक्षीणां गाढमालिङ्गनं यथा ॥ तैलं नस्येन हन्त्याशु गण्डमालां सुदुस्तराम् ॥ __ संभालुका स्वरस २ सेर, भंगरेका रस २ . संभालुके स्वरस और लागली ( कलिहारी ) सेर, धतूरेका रस २ सेर, गोमूत्र २ सेर और की जड़के कल्क से सिद्ध तैलकी नस्य लेनेसे तिलका तैल २ सेर तथा निम्न लिखित चीजेांका | कष्ट साध्य गण्डमाला भी शीघ्र ही नष्ट हो जाती है। कल्क लेकर सबको एकत्र मिलाकर पकावें। जब ( रस ४ सेर, तैल १ सेर और कल्क ५ रस जल जाय तो तैल को छान लें। | तोले लें।) For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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