SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 193
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [१९८] भारत-भैषज्य रत्नाकरः। [नकारादि एतैः समस्तैपिलप्रमाणे बेलकी जडकी छाल, असगन्धकी जड़, बड़ी रालोडय सर्व विधिना विपकम् । कटेलीकी जड़, गोखरुकी जड़, अरलुकी जड़की कर्पूरकाश्मीरमृगाण्डजानां छाल, खरैटीकी जड़, फरहद (या नीम ) की चूर्णीकृतानां त्रिपलप्रमाणम् ॥ जड़की छाल, कटेलीकी जड़, पुनर्नवाकी जड़, प्रस्वेददौर्गन्ध्यनिवारणाय अतिबला (कंघी) की जड़, अरणीकी जड़की दद्यात् मुगन्धाय वदन्ति केचित् । छाल, प्रसारणी, और पाढलकी जड़की छाल ११-१॥ नारायणं नाम महच्च तैलम् प्रस्थ ( हरेक १। सेर ) लेकर कूटकर सबको सर्वप्रकारैविधिवत्प्रयोज्यम् ॥ २५६ सेर पानीमें पकावें। जब ६४ सेर पानी शेष आश्वेव पुंसां पवनार्दिताना रह जाय तो काथको छान लें और उसमें १६ मेकाहीनार्दितवेपनानाम् । - सेर तिलका तैल, १६ सेर बकरी या गायका दूध, ये पङ्गवः पीठविसर्पिणश्च १६ सेर शतावरका रस और निम्न लिखित कल्क बाधिर्यशुक्रक्षयपीडिताश्च ॥ मिलाकर पकावें। मन्याहनुस्तम्भशिरोरुजार्ता कल्कद्रव्य-रास्ना, असगन्ध, सौंफ, देवमुक्तामयास्ते बलवर्णयुक्ता। दारु, कूठ, शालपर्णी, पृश्निपर्णी, मुद्गपर्णी, माषसंसेव्य तैलं सहसा भवन्ति पर्णी, अगर, नागकेसर, सेंधानमक, जटामांसी, वन्ध्या च नारी लभते च पुत्रम् ॥ वीरोपमं सर्वगुणोपपन्न हल्दी, दारुहल्दी,भूरिछरीला, सफेद कन्दन, पोखरसुमेधसं श्रीविनयान्वितश्च । मूल, इलायची, मजीठ, तगर, नागरमोथा, तेजशाखाश्रिते कोष्ठगते च वाते पात, भंगरा, जीवक, ऋषभक, ( दानांके अभावमें वृद्धौ विधेयं पवनार्दितानाम् ॥ विदारीकन्द ), मेदा, महामेदा (दोनेके अभावमें जिहानिले दन्तगते च शूले शतावर ), काकोली, क्षीरकाकोली, ( अभावमें उन्मादकौज्यज्वरकर्षितानाम् । असगन्ध), ऋद्धि, वृद्धि (दोनोंके अभावमें बाराहीमामोति लक्ष्मी प्रमदायित्वं कन्द), सुगन्धवाला, बच, पलाश (ढाक)की जड़की वपुःपकर्ष विजयश्च नित्यम् ।। छाल, गठीवन, श्वेतपुनर्नवा और चोरक । प्रत्येक नैलोपसेवी जरयाभिमुक्तो १०-१० तोले लेकर चूर्ण करें। जीवेचिरश्चापि भवेद् युवेव । । उपरोक्त काथादि और इस कल्कको एकत्र देवासुरे युद्धपरे समीक्ष्य | मिलाकर पकावें । जब तैलमात्र शेष रह जाय तो - स्नायवस्थिभङ्गानसुरैः सुरांश्य ॥ | उसे छान कर उसमें सुगन्ध के लिये कपूर, केसर नारायणेनापि मुहणार्थ और कस्तूरी, हरेक ५-५ तोले मिला दें। स्वनामतैलं विहितञ्च तेषाम् ॥ । यह तैल समस्त वातव्याधियोंको नष्ट करता For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy