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तैलमकरणम् ]
तृतीयो भागः।
[१९९]
है । एकाङ्गवात, अर्दित (लकवा), गात्रकम्पन, अस्यतैलस्य पकस्य शृणु वीर्यमतः परम् । पङ्गुता, पीठविसर्पिता, (लूलापन ), बधिरता, शुफ- | अश्वानां वातभग्नानां कुञ्जराणां नृणां तथा ।। क्षय, मन्यास्तम्भ, हनुस्तम्भ, ‘और शिरोरुजा, तैलमेतत्पयोक्तव्यं सर्ववातनिवारणम् । इत्यादि रोग इसके सेवन से शीघ्र ही नष्ट होकर | अपुमांश्च नरः पीत्वा निश्चयेन दृढो भवेत् ।। वल वर्णादिकी वृद्धि होती है। इसके सेवनसे बन्ध्या गर्भमश्वतरी विन्द्यात्कि पुनर्मानुषी तथा। स्त्रीको सर्वगुण मेधा और विनय सम्पन्न वीरपुत्र हृच्छूलं पार्श्वशूलश्च तथैवाविभेदकम् ।। प्राप्त होता है।
अपची गण्डमालाश्च वातरक्तं हनुग्रहम् । यह तैल शाखा और कोष्ठगत वायु, अण्ड- कामलापाण्डुरोगश्च अश्मरीश्चापि नाशयेत् ॥ वृद्धि, जिह्वागतवायु, दन्तशूल, कुब्जता, उन्माद तैलमेतद्भगवता विष्णुना परिकीर्तितम् । और वातज्वरको भी नष्ट करता है। नारायणमिदं ख्यातं वातान्तकरणं मतम् ॥
इस तैलको सेवन करनेवाला मनुष्य वृद्धा- शतावर, शालपर्णी, पृश्निपर्णी, कचूर, बच, वस्था रहित और प्रकृष्ट शरीर तथा सौन्दर्य- अरण्डमूल, कटेली, कटेला, करञ्जकी जड़, अतियुक्त एवं कामनी-प्रिय होकर दीर्घ काल तक बला ( कंघी ) की जड़ और कटसरैयाकी जड़ । युवावत् जीवित रहता है।
हरेक १०-१० पल ( ५०-५० तोले ) लेकर (३५०४) नारायणतैलम् १ (महा) (४)
सबको अधकुटा करके ३२ सेर पानीमें पकावें ।
जब ८ सेर पानी शेष रह जाय तो छानकर उसमें ( भै. र; च. द.; वृ. मा । वात.)
४-४ सेर गाय और बकरीका दूध, २ सेर शताशतावरी चांशुमती पृश्निपर्णी शठी वचा। वरका रस, २ सेर दूध, २ सेर तैल और नीचे एरण्डस्य च मूलानि वृहत्योः पूतिकस्य च ॥ लिखा कल्क मिलाकर पकावें । जब पानी जल गवेधुकस्य मूलानि तथा सहचरस्य च ।। जाय तो तैलको छान लें। एषां दशपलान्भागाञ्जलद्रोणे विपाचयेत् ।। पादावशेषे पूते च गर्भश्चैनं निधापयेत् ।
___कल्क-पुनर्नवा, बच, देवदारु, सोया,
सफेद चन्दन, अगर, छरीला, तगर, कूठ, इलापुनर्नवा वचा दारु शताहा चन्दनागुरुः ।।
यची, जटामांसी, शालपर्णी, बला (खरैटी), असशैलेयं तगरं कुष्ठमेला मांसी स्थिरा बला।
गन्ध, सेंधानमक और रास्ना । हरेक २॥२॥ अश्वाहा सैन्धवं रास्ना पलार्दानि च योजयेत्।।
यता तोले लेकर चूर्ण कर लें।
" गव्याजपयसोः प्रस्थौ द्वौ द्वावत्र प्रदापयेत् । शतावरीरसप्रस्थं तैलप्रस्थं विपाचयेत् ॥ रमप्र तैलप्रम्य विपाचयेत।
यह तैल घोड़े, हाथी और मनुष्यों के वात किसी किसी अन्धमें इसका नाम “ मध्यम
- विकारोंको नष्ट करता है । इसे पीने से पुरुषत्व विष्णुतैल" लिखा है।
हीन मनुष्य पौरुष युक्त हो जाता है, वन्ध्याको
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